Author: - | Last Updated: Mon 11 Nov 2019 12:26:11 PM
अमावस्या 2020 से संबंधित इस लेख में आपको वर्ष 2020 में पड़ने वाली अमावस्या तिथि की तारीख एवं वार की सूची दी गई है। इसके साथ ही आपको इस लेख माध्यम से अमावस्या तिथि से संबंधित विस्तार से जानकारी प्राप्त होगी। हम इस लेख में अमास्या तिथि के महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। हिन्दू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 12 माह और प्रति माह में 1 अमावस्या होती है। हालाँकि कई बार एक माह में अधिक मास के चलते 2 अमावस्या भी पड़ जाती हैं। चूँकि अमावस्या तिथि का अपना एक अलग महत्व है। इसलिए जो लोग अमावस्या तिथि में विश्वास रखते हैं उनको इस दिन का बहुत इंतज़ार रहता है वे यह जानने में इच्छुक रहते हैं कि अमावस्या कब है? क्योंकि इस दिन के लिए उन लोगों को कई सारी तैयारियाँ करनी होती हैं किंतु कई लोगों को यह ज्ञात नहीं होता और वह इंटरनेट पर – अमावस्या कब है? अमावस्या कब की है? – आदि लिखकर सही तिथि की जानकारी हासिल करने की कोशिश करते हैं। इसीलिए यहाँ हम आपको वर्ष 2020 में आने वाली सभी अमावस्या की तिथि और दिन बता रहे है।
दिनांक | अमावस्या |
शुक्रवार, 24 जनवरी 2020 | माघ अमावस्या |
रविवार, 23 फरवरी 2020 | फाल्गुन अमावस्या |
मंगलवार, 24 मार्च 2020 | चैत्र अमावस्या |
बुधवार, 22 अप्रैल 2020 | वैशाख अमावस्या |
शुक्रवार, 22 मई 2020 | ज्येष्ठ अमावस्या |
रविवार, 21 जून 2020 | आषाढ़ अमावस्या |
सोमवार, 20 जुलाई 2020 | श्रावण अमावस्या |
बुधवार, 19 अगस्त 2020 | भाद्रपद अमावस्या |
गुरुवार, 17 सितंबर 2020 | अश्विन अमावस्या |
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020 | आश्विन अमावस्या (अधिक) |
रविवार, 15 नवंबर 2020 | कार्तिक अमावस्या |
सोमवार, 14 दिसंबर 2020 | मार्गशीर्ष अमावस्या |
हिन्दू पंचांग पाँच घटकों से मिलकर बना है। इसके घटकों में तिथि, वार, करण, नक्षत्र एवं योग शामिल हैं। पंचांग के इन पाँच घटकों में तिथि में ही एक तिथि का नाम है अमावस्या। दरअसल पंचांग की 15 तिथियाँ एक पक्ष (शुक्ल/कृष्ण) का निर्माण करती हैं जबकि दो पक्षों से एक माह बनता है। शुक्ल पक्ष की पंद्रहवीं तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या के नाम से जानी जाती है। अमावस्या की रात में घनघोर अंधेरा होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता है।
शुक्ल पक्ष - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा।
कृष्ण पक्ष - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या।
अमावस्या तिथि का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। पितृदेव अमावस्या के स्वामी हैं। इसलिए सर्वपितृ अमावस्या को पित्तरों का तर्पण करने का विधान है। सामान्य रूप से प्रति माह में अमावस्या आती है और अमावस्याओं के इनके माह के नाम से जाना जाता है। परंतु कुछ अमावस्याएँ वार के नाम से जानी जाती हैं, जिनका धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषी रूप से महत्वपूर्ण माना जाती हैं।
उदाहरण के लिए सोमवती अमावस्या, अर्थात जो अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है उसे सोमवती अमास्या के नाम से जानते हैं। इसी प्रकार जो अमावस्या शनिवार के दिन पड़ती है उसे शनि अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
हिन्दू मान्यता है कि अमावस्या के दिन दान-पुण्य के कार्य करने से जीवन में आने वाली नकारात्मक दूर हो जाती है। अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। अमावस्या तिथि को कई तीज त्यौहार भी मनाए जाते हैं। यदि कभी सूर्य ग्रहण लगता है तो वह अमावस्या के दिन ही लगता है। इस दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा ये तीनों एक ही सीध में आ जाते हैं।
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चैत्र अमावस्या - चैत्र मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को चैत्र अमावस्या के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत का पालन करने से पित्तरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दक्षिणाभिमुख होकर अपने दिवंगत पित्तरों के तर्पण करना चाहिए।
वैशाख अमावस्या - वैशाख मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को वैशाख अमावस्या कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था।
ज्येष्ठ अमावस्या - ज्येष्ठ माह में आने वाली अमावस्या को शनि जयंती का पर्व पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन शनि देव का जन्म हुआ था। इस दिन शनि देव की पूजा से संबंधित कर्म-कांड किए जाते हैं।
आषाढ़ अमावस्या - आषाढ़ मास में आने वाली अमावस्या को आषाढ़ी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस अमावस्या से ही वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। इस अमावस्या को पितृकर्म अमावस्या भी कहते हैं।
श्रावण अमावस्या - श्रावण मास में आने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्रावण मास में वर्षा के कारण चारों तरफ़ हरियाली हरियाली दिखाई देती है। इसके ठीक तीन दिन बाद हरियाली तीज का पर्व भी आता है।
भाद्रपद अमावस्या - भाद्रपद मास में आने वाली अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या कहते हैं। इस अमावस्या में धार्मिक कर्मकांडों के लिए कुश (घास) को एकत्रित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस अमावस्या को धार्मिक कर्मकांडों में उपयुक्त होने वाली घास को एकत्रित किया जाए तो इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
अश्विन अमावस्या - अश्विन अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहते हैं। इस पंद्रह दिनों तक चलने वाला श्राद्ध समाप्त होता है। ज्ञात और अज्ञात पितरों के पूजन के लिए इस अमावस्या का बड़ा महत्व है।
कार्तिक अमावस्या - कार्तिक मास की अमावस्या हिन्दू धर्म के लिए अति महत्वपूर्ण है। इस अमावस्या तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी माता एवं ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी श्रीगणेश जी की पूजा की जाती है।
मार्गशीर्ष अमावस्या - मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या कहते हैं। इस दिन पित्तरों की शांति लिए दान-पुण्य एवं तर्पण किया जाता है। साथ ही इस दिन माँ लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है।
पौष अमावस्या - पौष अमावस्या को काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए उपवास रखा जाता है। इस दिन सूर्य देव की उपासना का भी बड़ा महत्व है। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन और मनन के लिए यह अमावस्या श्रेष्ठ है।
माघ अमावस्या - माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यदि आज के दिन जो व्यक्ति मौन व्रत रखता है तथा पवित्र नदी, जलाशय अथवा कुंड में स्नान-ध्यान करता है उस व्यक्ति मुनि पद की प्राप्ति होती है।
फाल्गुन अमावस्या - फाल्गुन अमावस्या सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए शुभ फलदायी माना जाता है। जीवन में सुख-शांति के लिए इस अमावस्या को व्रत रखा जाता है।
अमावस्या तिथि का धार्मिक महत्व इतना है कि इस दिन हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धार्मिक क्रिया-कर्म किए जाते हैं। पवित्र नदी-जलाशय अथवा कुंड में डुबकी लगाने से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा इस दिन उपवास का पालन कर आत्मा की शुद्धि तथा दान-पुण्य करने का विधान है।
आध्यात्मिक दृष्टि से अमावस्या तिथि महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज के दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देता है। जिससे की साधक का मन विचलित नहीं होता है। चंद्रमा हमारे मन-मस्तिष्क को प्रभावित करता है। साधना करने के लिए आज का दिन अति उत्तम होता है। तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले आज के दिन को बहुत महत्वपूर्ण दिन मानते हैं।
ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो चंद्रमा मन-मस्तिष्क, माता और द्रव्य पदार्थों का कारक है। आज के दिन चंद्रमा के न प्रकट होने के कारण मनुष्य का मन स्थिर होता है। स्थिर मन व्यक्ति के जीवन में स्थिरता लाता है। पुराणों के अनुसार काल सर्पदोष एवं पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए आज का दिन महत्वपूर्ण होता है।
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ऐसी मान्यता है कि अमावस्या तिथि को भूत एवं प्रेत आत्माएं अधिक सक्रिय और शक्तिशाली हो जाती हैं। इसलिए अमावस्या के दिन नकारात्मक विचारों एवं कर्मों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। शास्त्रों में कहा जाता है कि अमावस्या के दिन दूसरों का अन्न खान से पुण्य का ह्रास होता है। अतः आज के दिन दूसरों का भोजन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा अमावस्या तिथि को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। आज के दिन क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य एवं मास-मदिरा का सेवन न करें और न ही शारीरिक संबंध बनाएँ।
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि किसी विशेष अवसर पर दान-पुण्य करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसी शुभ अवसरों में अमावस्या तिथि भी एक है। कहते हैं कि इस तिथि को किया जाने वाला दान-पुण्य दिवंगत पित्तरों की आत्माओं को शांति एवं मोक्ष प्रदान करता है। साथ ही दान करने वाले व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। हालाँकि यहाँ सवाल ये उठ सकता है कि दान किसे करना चाहिए। दरअसल, दान पुण्य की चीज़ें हमेशा ही ज़रूरतमंद लोगों को ही दी जानी चाहिए। तभी दान का वास्तविक फल दान करने वाले व्यक्ति को प्राप्त होता है।
हम आशा करते हैं कि हमारी वेबसाइट एस्ट्रोकैंप पर अमावस्या 2020 से संबंधित यह लेख आपके ज्ञानवर्धन में सहायक होगा। हमसे जुड़े रहने के लिए धन्यवाद!