Grahan 2019: सूर्य एवं चंद्र ग्रहण 2019 कैलेंडर

Author: - | Last Updated: Tue 18 Sep 2018 2:11:33 PM

ग्रहण हमेशा से मानव समुदाय के लिए उत्सुकता का विषय रहा है। भारत के अलावा पश्चिमी देशों में भी ग्रहण को लेकर अलग-अलग मान्यताएँ हैं। हिन्दू धर्म में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को लेकर कई तरह की पौराणिक कथा और मान्यताएँ हैं। जिसकी वजह से वैदिक ज्योतिष में ग्रहण एक महत्वपूर्ण घटना है। सूर्य और चंद्र ग्रहण के घटित होने से मानव जीवन, प्रकृति और वस्तुओं पर सीधा असर पड़ता है। साल 2019 में कुल 5 ग्रहण घटित होंगे। इनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण दिखाई देंगे। वर्ष 2019 में जनवरी के महीने में एक-एक सूर्य और चंद्र ग्रहण दिखाई देंगे। 6 जनवरी को सूर्य ग्रहण और 21 जनवरी को चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। वहीं 2 जुलाई को दूसरा सूर्य ग्रहण और 16 जुलाई को इस वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण घटित होगा। 26 दिसंबर को साल का तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।

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वर्ष 2019 में होने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का विवरण:

सूर्य ग्रहण 2019
6 जनवरी 2019 05:04:08 से 09:18:46 तक
2 जुलाई 2019 23:31:08 से 26:14:46, 3 जुलाई तक
26 दिसंबर 2019 08:17:02 से 10:57:09 तक

सूचना: 26 दिसंबर 2019 को घटित होने वाला सूर्य ग्रहण ही भारत में दिखाई देगा। उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय मानक समयानुसार है।

विस्तृत सूर्य ग्रहण 2022 पढ़ने के लिए देखें - सूर्य ग्रहण 2022

चंद्र ग्रहण 2019
21 जनवरी 2019 08:07:34 से 13:07:03 तक
16 जुलाई 2019 25:32:35 से 28:29:50 तक

सूचना: 16 जुलाई 2019 को घटित होने वाला चंद्र ग्रहण ही भारत में दिखाई देगा। उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय मानक समयानुसार है।

विस्तृत चंद्र ग्रहण 2022 पढ़ने के लिए देखें - चंद्र ग्रहण 2022

ग्रहण और मानव जीवन

आकाश में विचरण करने वाले ग्रह, नक्षत्र और सितारे हमेशा से मानव जीवन को प्रभावित करते आये हैं। वहीं मानव समुदाय के मन में भी आकाश में होने वाली घटनाओं को लेकर उत्सुकता रहती है। क्योंकि इन घटनाओं का सीधा असर हमारे जीवन पर देखने को मिलता है। हिन्दू ज्योतिष में कर्म की प्रधानता के साथ-साथ ग्रह गोचर और नक्षत्रों के प्रभाव को भी मनुष्य की भाग्य उन्नति के लिए जिम्मेदार माना जाता है। नवग्रह में सूर्य और चंद्रमा भी आते हैं इसलिए सूर्य और चंद्र ग्रहण का महत्व बढ़ जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई भी ग्रहण घटित होने से पहले ही अपना असर दिखना शुरू कर देता है और ग्रहण की समाप्ति के बाद भी इसका प्रभाव कई दिनों तक देखने को मिलता है। ग्रहण का प्रभाव न केवल मनुष्यों पर बल्कि जल, जीव और पर्यावरण के अन्य कारकों पर भी पड़ता है। यही वजह है कि ग्रहण मानव समुदाय को प्रभावित करता है।

ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म में ग्रहण को लेकर एक प्राचीन कथा सुनने को मिलती है। इसमें सूर्य और चंद्र ग्रहण के लिए राहु और केतु को जिम्मेदार बताया गया है। मान्यता है कि देवासुर संग्राम के समय देवता और दानवों ने जब समुद्र मंथन किया था, उस समय समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया था। अमृत के सेवन से असुर जाति अमर हो जाती और यह समस्त जगत के लिए सही नहीं था, इसलिए असुरों को अमृत पीने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया। मोहिनी ने अपनी सुंदरता और बातों से दानवों को बहला दिया और उनसे अमृत लेकर, उसे देवताओं में बांटने लगी। मोहिनी रूप धारण किये भगवान विष्णु की इस चाल को राहु नामक दैत्य समझ गया और वह देवता का रूप धारण कर अमृत पीने के लिए देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, उसी समय सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और उसका भेद खोल दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया। हालांकि अमृत का सेवन कर लेने की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई इसलिए उसका सिर राहु व धड़ केतु सौर मंडल में छायाग्रह के नाम से स्थापित हो गए। कहा जाता है कि राहु और केतु, सूर्य व चंद्रमा से इसी वजह से शत्रुता रखते हैं और इसी बैर की वजह से सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं। कहते हैं कि ग्रहण के समय राहु और केतु, सूर्य व चंद्रमा को निगल जाते हैं।

कुंडली में ग्रहण दोष

वैदिक ज्योतिष में कालसर्प दोष, गण्डमूल दोष, पितृ दोष, मांगलिक और ग्रहण दोष समेत कई प्रकार के दोष बताए गए हैं। कुंडली में अशुभ दोष के निर्मित होने से व्यक्ति को जीवन में कुछ समस्या और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सूर्य और चंद्र ग्रहण के घटित होने से कभी-कभी कुछ लोगों की कुंडलियों में ग्रहण दोष भी उत्पन्न होता है। यह एक अशुभ दोष है जिसकी वजह से मनुष्य को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जब किसी व्यक्ति की लग्न कुंडली के द्वादश भाव में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई एक ग्रह स्थित हो, तो ग्रहण दोष बनता है। वहीं अगर सूर्य या चंद्रमा के भाव में राहु-केतु में से कोई एक ग्रह बैठा हो, तो यह भी ग्रहण दोष कहलाता है। ग्रहण दोष के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में परेशानियां टलने का नाम नहीं लेती हैं। इस दौरान नौकरी-व्यवसाय में समस्या, आर्थिक चुनौती और खर्च की अधिकता जैसी परेशानी बनी रहती है।

ग्रहण और ग्रहण के प्रकार

ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब एक खगोलीय पिंड की छाया दूसरे खगोलीय पिंड पर पड़ती है, तो ग्रहण होता है। ग्रहण पूर्ण और आंशिक होने के साथ-साथ कई प्रकार के होते हैं।

  • जब सूर्य और पृथ्वी के मध्य में चंद्रमा आ जाता है, तब यह पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की किरणों को रोकता है और सूर्य पर अपनी छाया बनाता है। इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा गया है।
  • जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है, तो यह चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती है और उसमें अपनी छाया बनाती है। इस स्थिति को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
  • पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढक ले तब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है।
  • आंशिक सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढक लेता है तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।
  • वलयाकार सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह न ढकते हुए केवल उसके केन्द्रीय भाग को ही ढकता है तब उस अवस्था को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
  • पूर्ण चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेती है, तब पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है।
  • आंशिक चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रूप से ढकती है, तो उस स्थिति में आंशिक चंद्र ग्रहण होता है।
  • उपच्छाया चंद्र ग्रहण: जब चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी अपूर्ण प्रतीत होती है। तब इस अवस्था को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

ग्रहण को लेकर धर्म और विज्ञान के अपने-अपने मत हैं लेकिन दोनों में एक बात कि समानता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। चाहे वह ज्योतिष की दृष्टि से हो या स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि। इसलिए ग्रहण के समय में आवश्यक सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिए।

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