Author: Vijay Pathak | Last Updated: Tue 14 Dec 2021 2:19:52 PM
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ग्रहण एक खगोलीय घटना है, जिसमें जब दो ग्रहों के बीच में कोई अन्य ग्रह या पिंड (चंद्र) आ जाता है, तो इस स्थिति को हम ग्रहण कहते हैं। सामान्यतौर पर ग्रहण 2 तरह से घटित होता है- पूर्ण ग्रहण और आंशिक ग्रहण । पूर्ण ग्रहण उस स्थिति में घटित होता है, जब सूर्य ग्रह और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है, और चंद्रमा के चलते पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश पूरी तरह अवरुद्ध हो जाता है। इस स्थिति को ही पूर्ण ग्रहण के नाम से जाना जाता है। वहीं आंशिक ग्रहण उस स्थिति में घटित होता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में तो आ जाते हैं, लेकिन चंद्रमा सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने से नहीं रोक पाता है। इस स्थिति को ही आंशिक ग्रहण कहा जाता है।
ग्रहण वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण होता है। हम सभी जानते हैं कि जब ग्रह अपनी स्थिति बदलते हैं तो उनका हम सभी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ग्रहण के विषय में और विस्तार से जानने से पहले आपके लिए यह जानना ज़रूरी है कि ग्रहण कितने प्रकार का होता है। आमतौर ग्रहण दो प्रकार के होते हैं, पहला सूर्य ग्रहण और दूसरा चंद्र ग्रहण।
सूर्य ग्रहण उस स्थिति में घटित होता है, जब चंद्रमा सूरज और पृथ्वी के बीच में आ जाता है, जिसकी वजह से चंद्रमा सूर्य की कुछ या सारी रोशनी पृथ्वी तक पहुँचने से रोक लेता है और धरती पर उस समय साया फैल जाता है, विज्ञान के अनुसार इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये घटना सर्वदा अमावस्या को ही होती है। सूर्य ग्रहण को पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही देखा जा सकता है। अगर अवधि की बात करें तो चंद्रमा की छाया कम होने के कारण सूर्य ग्रहण की अवधि कुछ ही मिनटों की होती है। इस खगोलीय घटना को अधिकांश लोग देखने के इच्छुक होते हैं। सूर्य ग्रहण को कभी भी नग्न आँखों से नहीं देखने चाहिए, इसे देखने के लिए विशेष सुरक्षा रखना ज़रूरी होता है। सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं- पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण।
चंद्र ग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहा जाता है, जब चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ये स्थिति उस समय ही उत्पन्न होती है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्र इस क्रम में होते हुए एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। विज्ञान के अनुसार इसी घटना को हम चंद्र ग्रहण कहते हैं। चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन ही घटित होता है। चंद्र ग्रहण को पृथ्वी के किसी भी भाग से आसानी से देखा जा सकता है। अगर अवधि की बात करें तो चंद्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। चंद्र ग्रहण को देखने के इच्छुक लोग इसे नग्न आँखों से भी देख सकते हैं।
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अगर वर्ष 2022 में होने वाले सभी चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहणों की बात करें तो, कुल 2 चंद्र ग्रहण और 2 सूर्य ग्रहण इस वर्ष घटित होंगे। हम सभी जानते हैं कि ग्रहण का प्रभाव हर प्राणी के जीवन पर निश्चित रूप से पड़ता है। तो आइये सबसे पहले जानते हैं साल 2022 में घटित होने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहणों के बारे में विस्तार से:-
साल 2022 में मुख्य तौर से सूर्य ग्रहण दो बार घटित होगा:-
पहला सूर्य ग्रहण 2022 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ (भारतीय समयानुसार ) | सूर्य ग्रहण समाप्त (भारतीय समयानुसार ) | दृश्य क्षेत्र |
अप्रैल 30-1 मई (UTC/IST) | 00:15:19 बजे से | 04:07:56 बजे तक | साउथ अमेरिका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागरीय क्षेत्र, अटलांटिक और अंटार्टिका |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है। इस कारण ये सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इसलिए भारत में इस सूर्य ग्रहण का धार्मिक प्रभाव और सूतक मान्य नहीं होगा।
वर्ष 2022 का पहला सूर्य ग्रहण साल के पांचवें महीने मई के पहले दिन यानि 1 मई 2022 को लगेगा, जो एक आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। आंशिक सूर्य ग्रहण उस स्थिति में होता है, जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आ जाता कि सूर्य का कुछ भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चंद्रमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। जिसकी वजह से सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तो कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है। पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस ग्रहण का समय 1 मई, रविवार की सुबह को 00:15:19 बजे से प्रातः 04:07:56 बजे तक होगा। साल का पहला सूर्य ग्रहण साउथ अमेरिका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागरीय क्षेत्र, अटलांटिक और अंटार्कटिका भागों में भी दिखाई देगा। चूँकि भारत में इस सूर्य ग्रहण की दृश्यता शून्य रहेगी इसलिए यहाँ इसका सूतक काल भी प्रभावी नहीं होगा।
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दूसरा सूर्य ग्रहण 2022 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | दृश्य क्षेत्र |
25 अक्टूबर | 16:29:10 बजे से | 17:42:01 बजे तक | यूरोप, अफ्रीका महाद्वीप का उत्तरी-पूर्वी भाग, एशिया का दक्षिणी-पश्चिमी भाग और अटलांटिक |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है। इस कारण ये सूर्य ग्रहण भारत के कुछ जगहों पर दिखाई देगा। इसलिए भारत में इस सूर्य ग्रहण का धार्मिक प्रभाव और सूतक मान्य होगा।
वर्ष 2022 का दूसरा व अंतिम सूर्य ग्रहण एक आंशिक सूर्य ग्रहण होगा, जो 25 अक्टूबर को घटेगा। आंशिक सूर्य ग्रहण उस स्थिति में होता है, जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आ जाता है कि सूर्य का कुछ भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है। भारतीय समय अनुसार यह ग्रहण मंगलवार शाम में 16:29:10 बजे से शुरू होकर 17:42:01 बजे तक घटित होगा, जो यूरोप, अफ्रीका महाद्वीप का उत्तरी-पूर्वी भाग, एशिया का दक्षिणी-पश्चिमी भाग और अटलांटिक में ही नज़र आएगा। भारत में इस सूर्य ग्रहण की दृश्यता रहेगी जिसकी वजह से इसका सूतक काल भी यहाँ प्रभावी होगा।
वर्ष 2022 में मुख्य तौर से चंद्र ग्रहण दो बार घटित होगा। इस वर्ष घटित होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा।
पहला चंद्र ग्रहण 2022 | ||||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ (भारतीय समयानुसार ) | चंद्र ग्रहण समाप्त (भारतीय समयानुसार ) | ग्रहण का प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
15-16 मई (UTC/IST) | 07:02:05 बजे से | 12:20:49 बजे तक | पूर्ण | दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी-पश्चिमी एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अटलांटिक और अंटार्टिका |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है। हालांकि भारत में दृश्य न होने के कारण इस चंद्र ग्रहण का धार्मिक प्रभाव और सूतक मान्य नहीं होगा।
वर्ष 2022 का पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण साल के पांचवें महीने मई में 16 मई 2022 को लगेगा। भारतीय समय अनुसार इस ग्रहण का समय सोमवार को सुबह 08:59 बजे से 10:23 बजे तक होगा। साल का पहला चंद्र ग्रहण दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप , दक्षिणी-पश्चिमी एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अटलांटिक और अंटार्टिका भागों में भी दिखाई देगा। चूँकि भारत में इस चंद्र ग्रहण की दृश्यता शून्य रहेगी इसलिए यहाँ इसका सूतक काल भी प्रभावी नहीं होगा।
दूसरा चंद्र ग्रहण 2022 | ||||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ (भारतीय समयानुसार ) | चंद्र ग्रहण समाप्त (भारतीय समयानुसार ) | ग्रहण का प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
8 नवंबर (UTC/IST) | 13:32 बजे से | 19:26 बजे तक | आंशिक | उत्तरी-पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्टिका |
सूचना: उपरोक्त तालिका में दिया गया समय भारतीय समयानुसार है। इस कारण ये चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा। इसलिए भारत में इस चंद्र ग्रहण का धार्मिक प्रभाव और सूतक भी मान्य होगा।
वर्ष 2020 का दूसरा चंद्र ग्रहण 8 नवंबर, 2022 मंगलवार को पड़ेगा, जो, शाम 17:28 बजे से 19:26 बजे तक रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का दृश्य क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, हिंद महासागर, आर्कटिक और अंटार्टिका होंगे। भारत में यह चंद्र ग्रहण दिखाई देगा, इसलिए यहाँ इसका सूतक भी प्रभावी होगा।
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सूतक काल 2022 में ग्रहण के लगने से पहले ही प्रभावी हो जाता है, जो ग्रहण की समाप्ति के बाद ही खत्म होता है। लेकिन सूतक उन्हीं जगहों पर प्रभावी होता है जिन-जिन क्षेत्रों में ग्रहण की दृश्यता होती है। ग्रहण के सूतक काल को प्रहरों में बाँटा गया है। समय मानक के अनुसार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक के समय में कुल आठ प्रहर होते है। इस हिसाब से पूरे एक दिन के 24 घंटों को यदि आठ अलग-अलग भागों में बांट दिया जाये तो एक प्रहर लगभग 3 घंटे का बनता है। चंद्र ग्रहण के दौरान लगने वाला सूतक काल तीन प्रहर का होता है, जिसके अनुसार उसके सूतक काल की अवधि ग्रहण के 9 घंटे पहले ही शुरू हो जाती है, जो चंद्र ग्रहण के बाद समाप्त होती है। अब अगर सूर्य ग्रहण की बात करें तो ये चार प्रहर का होता है और उसके सूतक काल की अवधि सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले में लग जाती है, जो सूर्य ग्रहण के समाप्त होने के बाद समाप्त होती है।
हिन्दू धर्म के अनेक शास्त्रों में ग्रहण के सूतक काल के दौरान कुछ कार्यों को करना वर्जित बताया गया है तो वहीँ कई ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने हेतु ज़रूर करना चाहिए। चलिए आपको बताते हैं कि सूतक काल के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए-
ग्रहण के दिन सूतक काल लगने से पहले ही स्नान कर लें और ग्रहण की समाप्ति के बार दोबारा स्नान आदि कर के दान-पुण्य का कार्य करें। सूतक काल शुरू होते ही लोगों को मंदिर के दरवाज़े बंद कर देना चाहिए और अगर मंदिर खुला हो तो मूर्तियों पर पर्दा डाल दें। सूतक काल के समय जिस ग्रह का ग्रहण लग रहा हो उससे संबंधित मंत्रों का जाप करते रहने से उसके दुष्प्रभाव कम होते हैं।
सूर्य ग्रहण में करें इस मंत्र का जाप | चंद्र ग्रहण में करें इस मंत्र का जाप |
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात" | “ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्” |
इस अवधि में भगवान का ध्यान करते रहने और योग करने से सूतक का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। पहले से बने भोजन में सूतक काल के समय तुलसी के पत्ते डाल दें, जिससे उन पदार्थों पर ग्रहण का असर न पड़े। सूतक काल के दौरान किसी भी गर्भवती महिला को घर से बाहर बिल्कुल नहीं जाना चाहिए और इस समय उन्हें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ध्यान रखें की ग्रहण की छाया आपके गर्भ में पल रहे बच्चे पर नहीं पड़नी चाहिए।
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जब भी कोई ग्रहण लगता है तो उसके कुछ समय पहले से सूतक लग जाता है। सूतक लगने के बाद से लेकर ग्रहण खत्म होने के समय तक किसी भी शुभ या नए कार्यों की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। सूतक काल के दौरान तुलसी के पौधे को स्पर्श नहीं किया जाना चाहिए।
इस अवधि के दौरान भोजन बनाना और खाना दोनों ही कार्य वर्जित होते हैं। शास्त्रों के अनुसार सूतक काल के समय में दांतों की सफाई और बालों में कंघी नहीं करना चाहिए। सूतक काल लग जाने पर सोने से बचें।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूतक काल के दौरान किसी भी पवित्र मूर्ति का स्पर्श करना बेहद अशुभ माना जाता है। इस दौरान काम वासनाओं जैसे नकारात्मक विचारों को भी अपने मन में न आने दें। साथ ही इस समय अवधि के दौरान मल-मूत्र और शौच जैसे कार्यों को करने की भी मनाही होती है। इसके अलावा किसी भी धारदार चीज जैसे चाकू और कैंची का प्रयोग करना इस दौरान वर्जित होता है।
हिन्दू धर्म की पौराणिक ग्रंथों में हर विशेष दिन से जुड़ी कोई न कोई कथा आपको पढ़ने को अवश्य मिलती है। शास्त्रों में मौजूद ग्रहण के बेहद प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, ग्रहण को छाया ग्रह कहे जाने वाले राहु और केतु से जुड़ा माना जाता है। इस कथा के अनुसार जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तो उन्हें समुद्र से अमृत से भरे एक कलश की प्राप्ति हुई। इस कलश को पाने के लिए असुरों और देवताओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में असुरों की विजय हुई और वो अमृत का कलश अपने साथ पाताल लोक लेकर चले गए। देवताओं को पता था कि यदि असुरों ने अमृत पान कर लिया तो पूरी सृष्टि में असंतुलन फैल जायेगा, इसलिए भगवान विष्णु ने बेहद सुन्दर अप्सरा “मोहिनी” का रूप धारण किया और अपने आकर्षण से मोहित कर असुरों से अमृत का कलश ले लिया।
इसके बाद भगवान विष्णु जब मोहिनी रुप में देवताओं को अमृत पान करा रहे थे तो राहु नामक एक राक्षस को भगवान विष्णु की चाल समझ आ गयी और बड़ी चालाकी से वह भेष बदल देवताओं के समूह में अमृत पान करने के लिए खड़ा हो गया। उसकी बारी आने पर मोहिनी अमृत का प्याला लेकर राहु के पास पहुंची तो सूर्य और चंद्र देवता ने उसे पहचान लिया। लेकिन तब तक राहु अमृत की कुछ बूंदें पी चुका था। सच्चाई का पता चलते ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृत पान करने की वजह से राहु अमर हो गया था। जिसके चलते उसके शरीर के दो टुकड़े होने के बावजूद भी वह जीवित रहा। उसके सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाने लगा। मान्यता है कि तभी से राहु और केतु का सूर्य और चंद्र देव से ये बैर चला आ रहा है और उनसे अपनी उसी शत्रुता का बदला लेने के लिए ही समय-समय पर राहु-केतु चंद्र-सूर्य को ग्रहण लगाते हैं।
हम आशा करते हैं कि ग्रहण 2022 पर लिखा गया यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोकैंप से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद !