Author: -- | Last Updated: Tue 24 Sep 2019 3:43:25 PM
कर्णवेध मुहूर्त 2020 (Karnavedha Muhurat 2020) - हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है कर्णवेध संस्कार। यह संस्कार शुभ मूहर्त में संपन्न होता है। यहाँ आपके लिए वर्ष 2020 में पड़ने वाले कर्णवेध संस्कार के लिए मूहूर्त की पूरी सूची दी गई है। आप अपनी सुविधा अनुसार कर्णवेध मुहूर्त को चुनकर संस्कार की विधि संपन्न कर सकते हैं। इसके अलावा हम यहाँ आपको कर्णवेध संस्कार के विषय में विस्तार से जानकारी देंगे, जिसमें हम आपको कर्णवेध मुहूर्त 2020 के साथ-साथ कर्णवेध संस्कार की विधि और इसके महत्व की जानकारी देंगे।
दिनांक | वार | तिथि | नक्षत्र | मुहूर्त की समयावधि |
16 जनवरी | गुरु | माघ कृ. षष्ठी | हस्त | 07:15-09:42 |
17 जनवरी | शुक्र | माघ कृ. सप्तमी | चित्रा | 07:15-07:28 |
27 जनवरी | सोम | माघ शु. तृतीया | शतभिषा | 07:12-19:12 |
30 जनवरी | गुरु | माघ शु. पंचमी | उ.भाद्रपद | 15:12-19:00 |
31 जनवरी | शुक्र | माघ शु. षष्ठी | रेवती | 07:10-18:10 |
7 फरवरी | शुक्र | माघ शु. त्रयोदशी | पुनर्वसु | 07:06-18:24 |
13 फरवरी | बुध | फाल्गुन कृ. पंचमी | हस्त | 07:02-20:02 |
14 फरवरी | शुक्र | फाल्गुन कृ. षष्ठी | स्वाति | 07:01-18:21 |
17 फरवरी | सोम | फाल्गुन कृ. नवमी | ज्येष्ठा | 14:36-20:06 |
21 फरवरी | शुक्र | फाल्गुन कृ. त्रयोदशी | उत्तराषाढ़ा | 09:13-17:21 |
28 फरवरी | शुक्र | फाल्गुन शु. पंचमी | अश्विनी | 06:48-19:23 |
5 मार्च | गुरु | फाल्गुन शु. दशमी | आर्द्रा | 11:26-18:59 |
11 मार्च | बुध | चैत्र कृ. द्वितीया | हस्त | 06:35-18:36 |
13 मार्च | शुक्र | चैत्र कृ. चतुर्थी | स्वाति | 08:51-13:59 |
16 अप्रैल | गुरु | वैशाख कृ. नवमी | धनिष्ठा | 18:12-20:50 |
17 अप्रैल | शुक्र | वैशाख कृ. दशमी | उ.भाद्रपद | 05:54-07:05 |
27 अप्रैल | सोम | वैशाख शु. चतुर्थी | मृगशिरा | 14:30-20:07 |
29 अप्रैल | बुध | वैशाख शु. षष्ठी | पुनर्वसु | 05:42-19:58 |
30 अप्रैल | गुरु | वैशाख शु. सप्तमी | पुष्य | 05:41-14:39 |
13 मई | बुध | ज्येष्ठा कृ. षष्ठी | श्रावण | 05:32-19:04 |
14 मई | गुरु | ज्येष्ठा कृ. सप्तमी | श्रावण | 05:31-06:51 |
20 मई | बुध | ज्येष्ठ कृ. त्रयोदशी | अश्विनी | 05:28-19:19 |
25 मई | सोम | ज्येष्ठ शु. तृतीया | मृगशिरा | 05:26-05:54 |
27 मई | बुध | ज्येष्ठ शु. पंचमी | पुनर्वसु | 05:25-20:28 |
28 मई | गुरु | ज्येष्ठ शु. षष्ठी | पुष्य | 0525-0727 |
1 जून | सोम | ज्येष्ठ शु, दशमी | हस्त | 05:24-13:16 |
3 जून | बुध | ज्येष्ठ शु, द्वादशी | स्वाति | 05:23-06:21 |
7 जून | रवि | आषाढ़ कृ. द्वितीया | मूल | 05:23-19:44 |
8 जून | सोम | आषाढ़ कृ. तृतीया | उत्तराषाढ़ा | 05:23-18:21 |
10 जून | बुध | आषाढ़ कृ. पचमी | श्रावण | 05:23-10:34 |
11 जून | गुरु | आषाढ़ कृ. षष्ठी | धनिष्ठा | 11:28-19:29 |
15 जून | सोम | आषाढ़ कृ. दशमी | रेवती | 05:23-16:31 |
17 जून | बुध | आषाढ़ कृ. एकादशी | अश्विनी | 05:23-06:04 |
कर्णवेध मुहूर्त 2020 के शुभ मुहूर्त के बारे में हमने विस्तार पूर्वक बताया है। सनातन संस्कृति के अनुसार जब एक हिन्दू परिवार में किसी बच्चे का जन्म होता है तो जन्म के कुछ दिनों बाद बच्चे के कान को छेदा जाता है। कान छेदने की इस परंपरा को वैदिक शास्त्रों में एक व्यवस्था के निमित्त किया जाता है। उस व्यवस्था को कर्णवेध संस्कार के नाम से जाना जाता है। 16 संस्कारों में यह नौवाँ संस्कार है। कर्णवेध दो शब्दों को मिलाकर बनाकर बना है। जिसमें पहला कर्ण अर्थात कान यौर दूसरा शब्द वेध है अर्थ जिसका अर्थ छेदना होता है। ऐसा माना जाता है कि बिना कर्णवेध संस्कार के व्यक्ति श्राद्ध कर्म नहीं कर सकता है। इसके साथ ही यह संस्कार श्रवण शक्ति को बढा़ने, कान में आभूषण पहनने एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जाता है। विशेषकर कन्याओं के लिए यह संस्कार आवश्यक माना जाता है।
कर्णवेध संस्कार उपनयन संस्कार के पूर्व किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणें कानों के छिद्रों से जब आरपार होती हैं वह बालक/बालिका को तेज और संपन्न बनाती हैं। चूँकि हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है इसलिए इसी वर्ण व्यवस्था के अनुसार यह संस्कार अलग-अलग तरीके से भी किया जाता है। जहाँ बाह्मण और वैश्य के बच्चे का यह संस्कार चाँदी सुई से तो शूद्र वर्ण से संबंध रखने वाले बच्चे का यह संस्कार लोहे की सुई से किया जाता है। जबकि क्षत्रिय बच्चे का यह संस्कार सोने की सुई से किया जाता है। साथ ही बाह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज से आने वाले बच्चों का यह संस्कार साही के कांटे से भी किया जा सकता है। इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में किया जाता है।
प्रकृति के नियमानुसार समय के साथ चीज़ों में बदलाव आता है। यह बदलाव सनातन काल से चली आ रही परंपरा में भी हुए हैं। इसलिए कर्णवेध संस्कार लोग अपने-अपने तरीके से करने लगे हैं। यहाँ तक कि लोग इसके लिए मुहूर्त यानि शुभ समय का भी विचार नहीं करते हैं। किंतु शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि प्रत्येक शुभ कार्य (कर्मकांड) को एक निश्चित मुहूर्त में किया जाना चाहिए। तभी वह कार्य अपने वास्तविक उद्देश्य को पाने में सफल हो पाएगा। चूँकि कर्णभेद हिन्दू संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इसलिए इसे एक शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। कर्णवेध मुहूर्त के लिए हिन्दू पंचांग का विचार होता है। कर्णवेध मुहूर्त 2020 के लिए भी हिंदू पंचांग का विचार किया गया है।
कर्णवेध मुहूर्त 2020 हिंदू पंचांग के अनुसार निकाला गया है। साथ ही जिस किसी बच्चे का यह संस्कार होता है उसकी जन्म कुंडली के आधार पर भी शुभ मुहूर्त की गणना की जाती है। पंचांग के अनुसार, वर्ष के चैत्र, कार्तिक, पौष और फाल्गुन माह कर्णवेद मुहूर्त के लिए सर्वोत्तम होते हैं। जबकि तिथियों में चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि को छोड़कर सभी तिथियाँ कर्णवेद मुहूर्त के लिए शुभ होती हैं। वहीं नक्षत्रों में मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु बेहद शुभ हैं और वारों में सोम, बुध और शुक्रवार कर्णवेध मुहूर्त के लिए शुभ हैं। वहीं जब गुरु वृषभ, धनु, तुला और मीन लग्न में हो तो यह स्थिति गोचर के लिए शुभ होती है।
कर्णवेध संस्कार ग्रहण काल, खर मास, क्षय तिथि, चतुर्मास, जन्म मास और भद्रा में नहीं करना चाहिए।
किसी भी बच्चे का कर्णवेध संस्कार उसके जन्म के 10वें, 12वें या 16वें दिन में किया जाता है। लेकिन अगर किसी कारण से उपरोक्त समय में न हो पाए तो जन्म से छठे, सातवें, आठवें, दसवें या फिर बारहवें माह में किया जा सकता है। कर्णवेध मुहूर्त 2020 के माध्यम से आप बच्चे के जन्म के अनुसार कर्णवेध संस्कार की तारीख तय कर सकते हैं।
कर्णवेध एक पवित्र संस्कार है। इसलिए इस संस्कार में सबसे पहले देवी-देवताओं की पूजा होती है। इसके अलावा कुछ लोग इस संस्कार में अपने कुल देवी-देवताओं को भी पूजते हैं। जिस बच्चे का कर्णवेध संस्कार होता है उसे पूर्व की दिशा में मुख करके बिठाया जाता है। पूर्व की दिशा शुभ होती है। इस दिशा से बच्चे के अंदर सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। संस्कार के दौरान बालक के कान में एक मंत्र पढ़ा जाता है -
यदि संस्कार किसी लड़के का होता है तो उसका दायां कान छेदा जाता है। वहीं लड़की के बायें कान को छेदने का विधान है। कान छेदने के बाद बच्चे के कान में सोने की बालियाँ पहनायी जानी चाहिए।
कर्णवेध मुहूर्त 2020 के माध्यम से हम यह बताना चाहते हैं कि बालक के कान छेदते समय कई प्रकार की सावधानियाँ बरतनी चाहिए। कान छेदने वाला औजार कीटाणुरहित होना चाहिए। इसके लिए औजार को गर्म पानी से अच्छी तरह से साफ़ कर लें। जब बालक के कान में छेद हो जाए तो उस पर एंटी सेप्टिक क्रीम अवश्य लगाना चाहिए। वैसे तो बच्चे को सोने की बाली पहनानी चाहिए। किंतु यदि ऐसा कर पाने में असमर्थ होते हैं तो बालक को ऐसी बाली पहनानी चाहिए जो कि निकल तत्व मुक्त हो और उसे पहनने में बच्चे को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
आईए कर्णवेध मुहूर्त 2020 के माध्यम से जानें इस संस्कार का महत्व। हिन्दू संस्कृति में किए जाने वाले कर्मकांड के पीछे एक विशेष महत्व अवश्य ही छिपे होते हैं। चूँकि कर्णवेध संस्कार भी सनातन परंपरा का एक प्रमुख कर्मकांड है। इसलिए इसे संस्कार को करने के पीछे भी एक विशेष उद्देश्य है। इस संस्कार को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इस संस्कार के पीछे वैज्ञानिक महत्व छिपा हुआ है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि कान छेदने से बच्चे का शारीरिक और बौद्धिक विकास भली प्रकार से होता है। इसके साथ ही कान छेदने से बच्चे की सुनने की समझ बढ़ जाती है। उसे हार्निया और लकवे जैसी बीमारियाँ नहीं होती हैं। कानों में झुमके या बालियाँ पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म नियमित रूप से आता है। इससे हिस्टीरिया रोग में भी लाभ मिलता है।
कर्णवेध संस्कार न केवल धार्मिक दृष्टि महत्वपूर्ण है बल्कि इसका ज्योतिषीय महत्व भी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार से राहु केतु के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है। ये दोनों ही क्रूर ग्रह हैं और जीवन में आने वाला आकस्मिक संकट भी इन्हीं दोनों ग्रहों के दोष के कारण आता है। इसलिए राहु केतु के बुरे प्रभावों से अपने बच्चे को बचाने के लिए उसका कर्णवेध संस्कार अवश्य ही करवाना चाहिए।
हम उम्मीद करते हैं कि कर्णवेध मुहूर्त 2020 से जुड़ा यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। हमारी वेबसाइट से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद!