इस लेख में आपको ग्रहण 2020 (Grahan 2020) के बारे में सारी जानकारी मिलेगी। आप यहाँ विस्तार से वर्ष 2020 में होने वाले ग्रहण के बारे में जान सकेंगे। इस वर्ष 2 सूर्य ग्रहण और 4 चंद्र ग्रहण घटित होंगे। यानि इस वर्ष कुल 6 ग्रहण हैं, जिनका प्रभाव क्षेत्र भी भिन्न-भिन्न जगहों पर है। जैसा कि ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएँ हैं। इनमें ग्रहण दोष से बचाव के लिए क्या करना चाहिए? ग्रहण के दौरान किन बातों की सावधानियाँ बरतनी चाहिए सूतक के प्रभाव को कैसे शून्य करना चाहिए? आदि आदि। इस पेज़ में आपको इस प्रकार की हर जिज्ञासाओं को दूर किया जाएगा। परंतु आइए इससे पहले जानते हैं साल 2020 में होने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में।
साल 2020 का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को घटित हो रहा है। ख़ास बात ये है कि यह सूर्य ग्रहण वलयाकार होगा। इसमें चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह न ढकते हुए केवल उसके केन्द्रीय भाग को ही ढकेगा। यह सूर्य ग्रहण भारत, दक्षिण-पूर्व यूरोप, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अफ्रीका और उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश भाग में दिखाई देगा। भारतीय दृष्टिकोण से यह सूर्य ग्रहण महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में यह दृश्य है इसलिए ग्रहण का सूतक भी यहाँ मान्य होगा।
पहला सूर्य ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
21 जून | 09:15:58 बजे से | 15:04:01 बजे तक | वलयाकार |
दूसरा सूर्य ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
14-15 दिसंबर | 19:03:55 बजे से | 00:23:03 बजे तक | पूर्ण |
यहाँ सूर्य ग्रहण 2020 के बारे में विस्तार से जानें
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि इस साल 4 चंद्र ग्रहण हैं और चारों उपच्छाया चंद्र ग्रहण हैंं। उपच्छाया चंद्र ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी की पेनुम्ब्रा से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी कटी दिखाई देती हैं। यहाँ उन चारों चंद्र ग्रहण से संबंधित जानकारी दी गई है।
पहला चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
10-11 जनवरी | 22:37 बजे से | 02:42 बजे तक | उपच्छाया |
साल का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी 2020 को लग रहा है। इस ग्रहण का दृश्य क्षेत्र भारत समेत, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों तक सीमित रहेगा।
दूसरा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
5-6 जून | 23:16 बजे से | 02:34 बजे से | उपच्छाया |
साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 5 जून को लग रहा है। यह चंद्र ग्रहण यूरोप के साथ-साथ भारत समेत, अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा।
तीसरा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
5 जुलाई | 08:38 बजे से | 11:21 बजे से | उपच्छाया |
साल का तीसरा चंद्र ग्रहण 5 जुलाई को लग रहा है। यह चंद्र अमेरिका, दक्षिण पश्चिम यूरोप और अफ्रीका के कुछ भागों में दिखाई देगा।
चौथा चंद्र ग्रहण 2020 | |||
दिनांक | चंद्र ग्रहण प्रारंभ | चंद्र ग्रहण समाप्त | ग्रहण का प्रकार |
30 नवंबर | 13:04 बजे से | 17:22 बजे से | उपच्छाया |
साल का चौथा चंद्र ग्रहण 30 नवंबर को लग रहा है। यह चंद्र एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा।
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ऐसा कहा जाता है कि है सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान एक निश्चित अशुभ समय होता है जिसे सूतक काल कहा जाता है। इस अवधि में किए गए कार्यों पर ग्रहण का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः इस दौरान विभिन्न कार्यों को करने से मना किया गया है। हालाँकि ऐसे कई कार्य हैं जिन्हें सूतक के दौरान करने से ग्रहण का नकारात्मक असर जीवन पर नहीं पड़ता है।
एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक के समय को आठ प्रहर में बाँटा गया है। ये आठ प्रहर दिन के 24 घंटों के बराबर होते हैं। ऐसे में क़रीब-क़रीब तीन घंटों का एक प्रहर माना गया है। सूतक काल किसी कार्य को करने या उसके न करने से जुड़ा हुआ है।
यदि चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण देखा जा सकता है तो उस अवस्था में ही सूतक काल प्रभावित होगा, अन्यथा जहाँ ग्रहण दृश्य ही न हो तो वहाँ सूतक मान्य नहींं होता है। सूर्य ग्रहण में सूतक काल चार प्रहर का होता है, जो कि सूर्य ग्रहण से ठीक पहले के 12 घंटे होते हैं। वहीं चंद्र ग्रहण में सूतक काल तीन प्रहर का होता है, जो कि चंद्र ग्रहण के पहले के 9 घंटे होते हैं। सूतक काल ग्रहण के समाप्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है।
गर्भवती महिलाओं के गर्भ में एक नए जीवन का निर्माण होता है। अतः ग्रहण के दौरान उनको अपना विशेष ख़्याल रखना चाहिए, ताकि शिशु पर राहु व केतु की नकारात्मक दृष्टि न पड़े। इस दौरान उन्हें सिलाई, बुनाई, कढ़ाई आदि क्रियाओं से बचना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से शिशु के अंगों को क्षति पहुँचती है।
ग्रहण के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। इससे ग्रहण के बुरे प्रभावों का असर नगण्य हो जाता है:
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात"
“ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्”
यह एक खगोलीय घटना है। इस घटना विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि इस घटना को बनने में तीन ग्रहों का एक सीध में आ जाना होता है। इसमें सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है, जिससे पृथ्वी पर सूर्य कि करण नहीं पहुँच पाती हैं। यदि चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है तो यह पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के प्रकार भी होते हैं और हमें इन प्रकारों को समझना आवश्यक है। जैसे:-
पूर्ण सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढक लेता है तब उस स्थिति को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं।
आंशिक सूर्य ग्रहण
आंशिक सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढकता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह न ढकते हुए केवल उसके केन्द्रीय भाग को ही ढकता है तब उस स्थिति को वलयाकार सूर्य ग्रहण के नाम से जाना जाता है।
इसके अलावा यदि चंद्रमा सूर्य के केवल केंद्र भाग को ही ढके तो इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण राहु-केतु के कारण लगता है। हालाँकि खगोल विज्ञान के मुताबिक चंद्र ग्रहण आकाश मंडल की एक खगोलीय घटना है। इस घटना में सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीन एक ही रेखा में आ जाते हैं और सूर्य और चंद्रमा के मध्य में पृथ्वी आ जाती है। चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन ही लगता है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेती है, तब पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है।
आंशिक चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रूप से ढकती है, तो उस स्थिति को आंशिक चंद्र ग्रहण कहते हैं।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण
जब चंद्रमा पृथ्वी की पेनुम्ब्रा से होकर गुजरता है। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी कटी दिखाई देती हैं। तब इस अवस्था को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण के समय राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से अपनी शत्रुता का बदला लेते हैं। इनके बीच शत्रुता कैसे हुई इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। ऐसा कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था तो उस मंथन से 14 प्रकार के रत्न निकले थे। उन 14 रत्नों में एक रत्न अमृत था, जिसे पीकर कोई भी अमर हो सकता था।
अब उस अमृत को पीने के लिए देवताओं और असुरों के बीच द्वंद्व होने लगा। इस द्वंद्व में असुरों ने देवताओं से अमृत का कलश छीन लिया। यदि असुर उस अमृत को पी जाते तो सृष्टि के लिए यह बेहद ही ख़तरनाक हो सकता है। ऐसे में उन्हें रोकने भगवान विष्णु जी ने मोहिनी नामक सुंदर अप्सरा का रूप धार किया था। अपने कामुक रूप में उन्होंने असुरों को अपने वश में कर लिया और उन्हें इस शर्त में मना लिया कि अमृत पान दोनों दलों में होना चाहिए।
किंतु जब भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में अमृत के प्याले को देवताओं और असुरों के बीच बांट रहे थे तो वे चतुराई से केवल देवताओं को ही अमृत पान करा रहे थे। इस बीच स्वरभानु नामक राक्षस देवताओं के समूह में रूप बदलकर बैठ गया। जब उसकी अमृत पीने की बारी आई तो चंद्र देव और सूर्य देव ने उसे पहचान लिया।
तभी विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया। हालाँकि राहु तब तक अमृत पान से अमर हो चुका था। उसका सिर और धड़ राहु- केतु के नाम से पहचाना गया। कहते हैं राहु-केतु इसी बात का बदलना लेने के लिए सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगाते हैं।
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