मुहूर्त 2020 के माध्यम से आपको इस वर्ष के सभी महत्वपूर्ण मुहूर्त जैसे विवाह मुहूर्त 2020, गृह प्रवेश मुहूर्त 2020, मुंडन मुहूर्त 2020, कर्णवेध मुहूर्त 2020, नामकरण मुहूर्त 2020, विद्यारंभ मुहूर्त 2020, अन्नप्राशन मुहूर्त 2020, उपयनय मुहूर्त 2020 इत्यादि मुहूर्त की वास्तविक तिथि एवं उनके शुभ समय के बारे में पता लगेगा।
यहाँ पायें वर्ष 2020 के विभिन्न मुहूर्त और समय:
मुहूर्त, एक ऐसा उत्तम समय होता है जिसमें शुभ कार्यों को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसलिए तो वैदिक कर्मकांड और पूजा के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता है। यहाँ तक मनुष्य के जन्म के पूर्व से लेकर मरणोपरांत तक होने वाले सभी 16 संस्कार (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह एवं अंत्येष्टि) शुभ मुहूर्त में किए जाते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, शुभ मुहूर्त में किए गए कार्यों पर ग्रह नक्षत्र का अनुकूल प्रभाव पड़ता है। उस समय उस विशेष कार्य के लिए सबसे अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण होता है।
शास्त्रों में मुहूर्त के महत्व को विस्तार पूर्वक बताया है। मुहूर्त को लेकर संस्कृत के एक श्लोक में यह कहा गया है कि काल: शुभ क्रियायोग्यो मुहूर्त इति कथ्यते। मुहूर्त दर्शन, विद्यामाधवीय (1/20) अर्थात जो समय शुभ कार्य के योग्य हो उसे ही मुहूर्त कहा जाता है। मुहूर्त की गणना वैदिक पंचांग से की जाती है और पंचांग पाँच अंगों से मिलकर बना होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों एवं ज्योतिष विद्वानों ने मुहूर्त से संबंधित से अनेकों ग्रंथों की रचना की है। जैसे मुहूर्त शास्त्र, मार्तंड, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त माला, मुहूर्त गणपति, मुहुर्त सिंधू, मुहूर्त प्रकाश एवं मुहूर्त दीपक आदि। उपरोक्त सभी शास्त्रों की रचना मुहूर्त के उद्देश्य से की गई है।
वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, एक मुहूर्त लगभग दो घटी (48 मिनट) का होता है। लेकिन यह तब होता है जब दिन और रात दोनों ही समान हों। सरल शब्दों में कहें तो 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात। इस प्रकार दिन में 15 मुहूर्त होते हैं और रात में भी इतने ही मुहूर्तों की संख्या होती है। ऐसे ही जब दिन और रात की अवधि में समानता न हो तो दिन और रात में मुहर्तों की संख्या में भी विभिन्नता हो जाती है।
हिन्दू धर्म में पंचांग को मुहूर्त के साथ-साथ माह, तिथि वार एवं नक्षत्र को देखा जाता है जैसा की मुहूर्त 2020 लेख में बताया गया है। हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व एवं त्यौहार वैदिक पंचांग की गणना पर ही आधारित होते हैं। चूँकि पंचांग पाँच अंगों का समावेश है। इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण आते हैं।
जिस प्रकार अंग्रेजी ज्यादा सही कहा जाए तो ग्रेगोरियनन कैलेंडर में एक तारीख होती है उसी तरह वैदिक पंचांग में एक तिथि होती है। हालाँकि इन दोनों में बड़ा अंतर ये है कि तारीख़ रात के बारह बजे से शुरु होकर अगली रात 12 बजे बदल जाती है। लेकिन आमतौर पर तिथि एक सूर्योदय से शुरु होकर दूसरे सूर्योदय तक व्याप्त रहती है। लेकिन कई एक ही दिन में दो तिथियाँ भी आ जाती हैं। ऐसी स्थिति में जो तिथि एक भी सूर्योदय नहीं देख पाती तो उसे क्षय तिथि कहते हैं। जबकि जो तिथि दो सूर्योदय तक व्याप्त रहती है उसे वृद्धि तिथि कहते हैं। एक माह में तीस तिथियाँ होती हैं। 15 कृष्ण पक्ष की और 15 शुक्ल पक्ष की। शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अमावस्या कहलाती है। इस वर्ष में मुहूर्त 2020 की सभी तिथियों के जानकारी के अनुसार ही इस वर्ष के सभी मुहूर्त का निर्माण किया गया है।
कई ऐसे कर्मकांड होते हैं जिन्हें कुछ विशेष तिथियों में नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए अमावस्या या फिर पूर्णिमा के दिन ग्रह प्रवेश करना शुभ नहीं माना जाता है।
पंचांग में वार दिन को कहा जाता है। एक सप्ताह में सात वार होते हैं - सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, रवि। यहाँ हर एक वार की अपनी-अपनी प्रकृति होती है और उनकी इसी प्रकृति के कारण मुहूर्त निर्धारित होता है। कई धार्मिक कर्मकांड हैं जो मंगल के दिन नहीं होते हैं। इसलिए मुहूर्त निकालते समय वार को भी ध्यान में रखा जाता है। अधिक जानकारी के लिए मुहूर्त 2020 के अंतर्गत सभी शुभ मुहूर्त के बारे में जान सकते हैं।
नक्षत्र | राशि | स्वामी ग्रह | देवता | डिग्री |
अश्विनी | मेष | केतु | अश्विनी कुमार | 0 - 13:20 डिग्री |
भरणी | मेष | शुक्र | यम | 13°20' से 26°40' |
कृतिका | मेष - वृषभ | सूर्य | अग्नि | मेष 26°40' से वृषभ 10°00' |
रोहिणी | वृषभ | चन्द्रमा | ब्रह्मा | वृषभ 10°00' से 23°20' |
मृगशिरा | वृषभ - मिथुन | मंगल | सोम | वृषभ 23°20' से मिथुन 6°40' |
आर्द्रा | मिथुन | राहु | रूद्र | मिथुन 6°40' से 20°00' |
पुनर्वसु | मिथुन - कर्क | बृहस्पति | अदिति | मिथुन 20°00' से कर्क 3°20' |
पुष्य | कर्क | शनि | बृहस्पति | कर्क 3°20' से 16°40' |
अश्लेषा | कर्क | बुध | नाग | कर्क 16°40' से 30°00' |
मघा | सिंह | केतु | पितृ (पूर्वज ) | सिंह 0°00' से 13°20' |
पूर्व फाल्गुनी | सिंह | शुक्र | भगा | सिंह 13°20' से 26°40' |
उत्तरा फाल्गुनी | सिंह - कन्या | सूर्य | आर्यानम | सिंह 26°40' से कन्या 10°00' |
हस्त | कन्या | चन्द्रमा | सूर्य | कन्या 10°00' से 23°20' |
चित्रा | कन्या - तुला | मंगल | तवशार या विशकर्मा | कन्या 23°20' से तुला 6°40' |
स्वाति | तुला | राहु | वायु देव | तुला 6°40' से 20°00' |
विशाखा | तुला - वृश्चिक | बृहस्पति | इन्द्राग्नि | तुला 20°00' से वृश्चिक 3°20' |
अनुराधा | वृश्चिक | वृश्चिक | मित्र | वृश्चिक 3°20' से 16°40' |
ज्येष्ठा | वृश्चिक | बुध | इंद्र | वृश्चिक 16°40' से 30°00' |
मूल | धनु | केतु | निरित्ति (निर्चर) | धनु 0°00' से 13°20' |
पूर्वाषाढ़ा | धनु | शुक्र | एपास | धनु 13°20' से 26°40' |
उत्तराषाढ़ा | धनु - मकर | सूर्य | विश्वदेव | धनु 26°40' से मकर 10°00' |
अभिजीत | मकर | बुध | ब्रह्मा | मकर 06° 40' से 10° 53' 20 |
श्रावण | मकर | चंद्रमा | विष्णु | धनु 10°00' से 23°20' |
धनिष्ठा | मकर - कुम्भ | मंगल | वासु | मकर 23°20' से कुम्भ 6°40' |
शतभिषा | कुम्भ | राहु | वरुण देव | कुम्भ 6°40' से 20°00' |
पूर्वाभाद्रपद | कुम्भ - मीन | बृहस्पति | अज्याआपादा | कुम्भ 20°00' से मीन 3°20' |
उत्तराभाद्रपद | मीन | शनि | अहिर बुध्यान | मीन 3°20' से 16°40' |
रेवती | मीन | बुध | पुष्पन | मीन 16°40' से 30°00' |
सूर्य और चंद्रमा की स्थिति पर आधारित कुल 27 पंचांग योग होते हैं, जो अपनी अलग-अलग प्रकृति और स्थिति रखते हैं। इन 27 योगों में से 9 योगों को अत्यंत अशुभ माना जाता है और यही वजह है कि उन योगों के दौरान किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। शेष पंचांग योग अपनी शुभ प्रकृति के अनुसार उत्तम फल देने में सक्षम होते हैं। आइए अब सभी सत्ताईस पंचांग योग की स्थिति के बारे में जानते हैं:
पंचांग योग | पंचांग योग की प्रकृति | राशि अंश और कला के अनुसार पंचांग योग | पंचांग योग और विभिन्न कार्य |
विष्कुम्भ | अशुभ | 0 राशि 0 अंश 0 कला से 0 राशि 13 अंश 20 कला तक | विष्कुम्भ का अर्थ होता है विष से भरा हुआ घड़ा। इसी कारण इस योग को अशुभ योग कहा जाता है और इसमें कोई भी कार्य करने से उस काम में सफलता मिलने की संभावना ना के बराबर होती है। |
प्रीति | शुभ | 0 राशि 13 अंश 20 कला से 0 राशि 26 अंश 40 कला तक | प्रीति का अर्थ होता है प्रेम। इसके दौरान किए जाने वाले कार्यों से मान और सम्मान की प्राप्ति होती है तथा इस दौरान अपने झगड़ों को समाप्त करने के लिए सुलह करने का प्रयास किया जा सकता है और रूठे हुए अपनों को मनाया जा सकता है। |
आयुष्मान | शुभ | 0 राशि 26 अंश 40 कला से 1 राशि 10 अंश 0 कला तक | आयुष्मान का अर्थ होता है लंबी आयु वाला। इसमें किए गए कार्य दीर्घकाल तक अच्छे परिणाम देते हैं। ऐसे सभी कार्य जो दीर्घावधि के लिए हों , इस दौरान किए जा सकते हैं। |
सौभाग्य | शुभ | 1 राशि 10 अंश 0 कला से 1 राशि 23 अंश 20 कला तक | सौभाग्य का अर्थ है उत्तम भाग्य। इस योग के दौरान किए जाने वाले कार्यों का अनुकूल परिणाम मिलता है और भाग्य का साथ प्राप्त होता है। उत्तम वैवाहिक जीवन के लिए यह योग अति शुभ है। |
शोभन | शुभ | 1 राशि 23 अंश 20 कला से 2 राशि 6 अंश 40 कला तक | शोभन अर्थात सुंदर। इस योग के दौरान यात्रा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यात्रा के दौरान आनंद की अनुभूति होती है तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। |
अतिगण्ड | अशुभ | 2 राशि, 6 अंश 40 कला से 2 राशि 20 अंश 0 कला तक | यह दुख देने वाला योग माना जाता है। यही वजह है कि किस योग के दौरान कोई भी कार्य शुरू करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे कार्य मानसिक तनाव के साथ-साथ दुख, अवसाद और निराशा भी दे सकते हैं। |
सुकर्मा | शुभ | 2 राशि, 20 अंश 0 कला से 3 राशि 3 अंश 20 कला तक | सुकर्मा अर्थात अच्छे कर्म वाला। इस योग के दौरान किए जाने वाले कार्य में सफलता मिलती है, इसलिए इस दौरान परिवार में कोई भी शुभ मंगल कार्यक्रम कराना, नौकरी की शुरूआत करना अति उत्तम रहता है। |
धृति | शुभ | 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक | किसी भी कार्य के शुभारंभ के लिए यह योग अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इसी कारण इस योग में काम का शिलान्यास कराना, गृहारम्भ के लिए मकान की नींव रखना,भूमि पूजन करना आदि कार्य इस योग में अत्यंत अच्छे परिणाम देते हैं। |
शूल | अशुभ | 3 राशि 16 अंश 40 कला से 4 राशि 0 अंश 0 कला तक | शूल का अर्थ होता है कांटा, जिसकी वजह से पीड़ा होती है। यही वजह है कि इस योग में कोई भी कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए क्योंकि उस कार्य में सफलता न मिलने से जीवन भर पीड़ा का एहसास होता है। |
गण्ड | अशुभ | 4 राशि 0 अंश 0 कला से 4 राशि 13 अंश 20 कला तक | यह एक अशुभ योग होने के कारण लोगों को इसे अच्छे कार्यों के लिए त्यागना बेहतर होता है क्योंकि इससे व्यक्ति की उलझनें और समस्याएं बढ़ती जाती हैं और सुलझने का नाम नहीं लेती। |
वृद्धि | शुभ | 4 राशि 13 अंश 20 कला से 4 राशि 26 अंश 40 कला तक | वृद्धि से तरक्की मिलती है। नया बिज़नेस शुरू करने के लिए या नौकरी शुरू करने के लिए यह योग अत्यंत अनुकूल होता है और इसमें व्यक्ति वृद्धि को प्राप्त होता है। |
ध्रुव | शुभ | 4 राशि 26 अंश 40 कला से 5 राशि 10 अंश 0 कला तक | ध्रुव योग के दौरान स्थायित्व देने वाले कार्य करना बेहतर रहता है जैसे कि शिलान्यास करना या गृहारंभ कराना या इमारत का निर्माण करना। अस्थिर प्रकृति के कार्यों के लिए यह योग अनुकूल नहीं है। |
व्याघात | अशुभ | 5 राशि 10 अंश 0 कला से 5 राशि 23 अंश 20 कला तक | यह योग जीवन में पीड़ा और घात देता है। इस दौरान कोई भी नया कार्य करने से बचना चाहिए और दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, अन्यथा पीड़ा और समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है। |
हर्षण | शुभ | 5 राशि 23 अंश 20 कला से 6 राशि 6 अंश 40 कला तक | हर्षण के नाम से स्पष्ट है कि यह हर्ष देने वाला योग है। इसलिए इस योग के दौरान कोई भी कार्य किया जा सकता है और वह आपको प्रसन्नता देगा, लेकिन पूर्वजों अर्थात पितरों के संबंधित कार्य इस योग में नहीं करने चाहिए। |
वज्र | अशुभ | 6 राशि 6 अंश 40 कला से 6 राशि 20 अंश 0 कला तक | वज्र एकदम कठोर होता है, इसलिए इसे अशुभ योग माना जाता है और इस दौरान कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे आपको पीड़ा पहुंचे। वाहन खरीदना, मूल्यवान धातु खरीदना, नए वस्त्र खरीदना, आदि कार्य इस दौरान नहीं करने चाहिए। |
सिद्धि | शुभ | 6 राशि 20 अंश 0 कला से 7 राशि 3 अंश 20 कला तक | सिद्धि अर्थात सफलता। इस योग में यदि कोई अच्छा कार्य किया जाए, तो उसमें सिद्धि अर्थात सफलता प्राप्त होती है। मंत्र जाप में सिद्धि के लिए भी यह योग अत्यंत शुभ फलदायक होता है। |
व्यतिपात | अशुभ | 7 राशि 3 अंश 20 कला से 7 राशि 16 अंश 40 कला तक | व्यतिपात योग में कोई भी कार्य करना नुकसान कराने वाला साबित होता है। इसलिए इस योग के दौरान कोई भी अच्छा कार्य करने से बचना चाहिए क्योंकि उसका परिणाम प्रतिकूल होता है। |
वरीयान | शुभ | 7 राशि 16 अंश 40 कला से 8 राशि 0 अशं 0 कला तक | वरीयान योग सभी प्रकार के कार्य में सफलता दिलाने वाला योग है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन पूर्वजों से संबंधित कर्म इस दौरान नहीं करने चाहिए। |
परिघ | अशुभ | 8 राशि 0 अंश 0 कला से 8 राशि 13 अंश 20 कला तक | परिघ योग एक अशुभ योग माना जाता है लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं, जिनमें यह योग अनुकूल साबित होता है। विशेष रूप से अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने और उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने में यह योग अत्यंत अनुकूल परिणाम देता है और आपको विजय दिलाता है। |
शिव | शुभ | 8 राशि 13 अंश 20 कला से 8 राशि 26 अंश 40 कला तक | यह भगवान शिव के नाम का योग है जो अत्यंत ही शुभ फलदायक है। इस योग के दौरान कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है और विशेष रूप से पूजा आराधना के लिए भी यह योग सर्वोत्तम है। |
सिद्ध | शुभ | 8 राशि 26 अंश 40 कला से 9 राशि 10 अंश 0 कला तक | किसी भी कार्य को शुरू करने में, जिसमें आपको कुछ सीखने की आवश्यकता पड़े, सिद्ध योग अत्यंत अनुकूल है। इस योग के दौरान मंत्र दीक्षा लेने अथवा विद्यारंभ करने में सफलता मिलती है। |
साध्य | शुभ | 9 राशि 10 अंश 0 कला से 9 राशि 23 अंश 20 कला तक | किसी भी विद्या को सीखने के लिए साध्य योग अत्यंत उत्तम फलदायक होता है। योग के फलस्वरूप कार्य में सफलता मिलती है और एकाग्रचित्त होकर व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है। |
शुभ | शुभ | 9 राशि 23 अंश 20 कला से 10 राशि 6 अंश 40 कला तक | नाम से ही स्पष्ट है कि यह योग अत्यंत शुभ और सफलतादायक है। इसके दौरान कोई भी कार्य किया जा सकता है और उससे व्यक्ति को प्रसिद्धि मिलती है। इस योग में किए गए कार्य व्यक्ति को महान बनाते हैं। |
शुक्ल | शुभ | 10 राशि 6 अंश 40 कला से 10 राशि 20 अंश 0 कला तक | इस योग में सभी प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं। इस योग में ईश्वर कृपा मिलती है और मंत्र सिद्धि में सफलता मिलती है। इस योग में किए गए कार्यों में आनंद मिलता है। |
ब्रह्म | शुभ | 10 राशि 20 अंश 0 कला से 11 राशि 3 अंश 20 कला तक | यह एक अत्यंत शुभ योग है। ऐसे कार्य जिसमें धैर्य और शांति की आवश्यकता हो इस योग के अंतर्गत किए जा सकते हैं, किसी अपने रूठे हुए को मनाना या झगड़े में सुलह कराना, आदि। |
ऐन्द्र | शुभ | 11 राशि 3 अंश 20 कला से 11 राशि 16 अंश 40 अंश तक | सभी प्रकार के राजकीय कार्यों के लिए ऐन्द्र योग अत्यंत शुभ फलदायक होता है। इसके अतिरिक्त इंद्रियों पर संयम रखने के लिए किए जाने वाले यम, नियम और आसन के लिए भी यह योग अत्यंत अनुकूल है। इस योग में किए जाने वाले कार्य सुबह और दोपहर के समय अधिक फलदायी साबित होते हैं और रात्रि में कम। |
वैधृति | अशुभ | 11 राशि 16 अंश 40 अंश से 12 राशि 0 अंश 0 कला तक | वैसे तो यह एक अशुभ योग है और इसमें कार्य करने नहीं जाएंगे फिर भी कोई कार्य करना आवश्यक हो, तो ऐसे कार्य करें जो स्थिर प्रकृति के हों। चलायमान प्रकृति के कार्य इस योग में करना अनुकूल नहीं है। |
उपरोक्त दी गयी विभिन्न योग जानकारी के आधार पर ही मुहूर्त 2020 के अंतर्गत सभी प्रकार के मुहूर्त की जानकारी उपलब्ध कराई गयी है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य आपको मुहूर्त 2020 यानि वर्ष 2020 में आने वाले सभी शुभ मुहूर्त का समय, मुहूर्त की महत्ता, उपयोगिता एवं आवश्यकता की जानकारी उपलब्ध करना है।
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