शुभ मुहूर्त 2021 (Shubh Muhurat 2021) के हमारे इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों ज़रूरी होता है शुभ मुहूर्त और कैसे की जाती है शुभ मुहूर्त की गणना? साथ ही हम आपको सभी महत्वपूर्ण मुहूर्त जैसे विवाह मुहूर्त 2021, गृह प्रवेश मुहूर्त 2021, मुंडन मुहूर्त 2021, कर्णवेध मुहूर्त 2021, नामकरण मुहूर्त 2021, विद्यारंभ मुहूर्त 2021, अन्नप्राशन मुहूर्त 2021, उपनयन मुहूर्त 2021 इत्यादि मुहूर्त की शुभ तिथि एवं उनके शुभ समय के बारे में भी विस्तार से बताने वाले हैं।
ये देखा गया है कि हर कोई चाहता है कि वो जिस भी कार्य की शुरुआत करें उसमें उसे न केवल भरपूर सफलता प्राप्त हो, बल्कि उस कार्य से अच्छे फलों की प्राप्ति भी मिल सकें। इसी प्रकार हम भी जिस भी कार्यों को करते है, पहले ही उसके समय व स्थितियों का आकलन करते हुए ये सुनिश्चित करते हैं कि क्या उस माहौल में कार्य की शुरुआत करना ठीक रहेगा या नहीं? क्या उससे हमे सफलता मिलेगी या नहीं? क्या उस कार्य के लिए वही घड़ी या समय अच्छा रहेगा या नहीं?
शुभ मुहूर्त भी ऐसा ही एक समय होता है। शुभ मुहूर्त 2021 पंच मुहूर्त की वो शुभ अवधि या समय होता है, जिसमें सौर मंडल के सभी ग्रहों और नक्षत्रों की चाल और स्थिति को देखकर ये आकलन किया जाता है कि वो सभी मूल जातकों के लिए शुभ या सबसे उत्तम फलदायक होते हैं।
ज्योतिष विज्ञान अनुसार देखें तो, वो समय जब हम ज्योतिष की मदद से ये समझते हैं कि उस समय मौजूद ग्रहों-सितारों की चाल, हमारे द्वारा किये जा रहे किसी भी कार्यों को अच्छे या बुरे तरीके से कैसे प्रभावित करेगी। ये भी देखा गया है कि कई बार हम इस शुभ मुहूर्त को ज्यादा अहमियत न देते हुए अच्छे फलों की चाह में कोई कार्य शुरु तो कर देते हैं, लेकिन हमे उस कार्य से सकारात्मक की जगह केवल और केवल नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ऐसे में ज्योतिष में उस परिस्थिति के पीछे ग्रहों का अनुकूल न होना सबसे बड़ा कारण माना जाता है। इसी कारण ज्योतिष विशेषज्ञ हमे किसी भी कार्य की शुरुआत शुभ मुहूर्त अनुसार ही करने की सलाह देते हैं। तो आइये जानते हैं, क्या होता है शुभ मुहूर्त और वर्ष 2021 अनुसार, शुभ मुहूर्त हमारे लिए कितना उपयोगी साबित होने वाला है।
ज्योतिष शास्त्र की माने तो, शुभ मुहूर्त वो मांगलिक समय होता है जब हम किसी भी शुभ कार्य या मांगलिक कार्य को शुरू कर सकते हैं, क्योंकि उस समय सौर मंडल के सभी ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति बेहद शुभ फल देने वाली होती है। जिसके चलते हम उस कार्य को शुभारंभ कर उससे शुभ परिणाम प्राप्त करने के साथ-साथ अपने रास्ते में आ रही हर बाधा को भी दूर करने में सफल होते हैं। इसी कारण शुभ मुहूर्त को शुभ घड़ी या शुभ समय भी कहा जाता है।
ज्योतिष अनुसार यूँ तो, कोई भी शुभ मुहूर्त कार्यों की शुरुआत करने वाले व्यक्ति की कुंडली में मौजूद सभी ग्रहों की दशा और उसकी कुंडली में बन रहे सभी दोष-योग को देखकर ही निकाला जाता है। परंतु हमारे रोज़मर्रा के जीवन में, प्रतिदिन कुछ ऐसे शुभ-अशुभ समय या मुहूर्त होते हैं, जिनके बारे में सही जानकारी ज्ञात कर हम खुद ही अपने रोज के कई कार्यों को शुभ मुहूर्त अनुसार करने में सक्षम होते है और इस समय की जानकारी के लिए हमे बार-बार किसी ज्योतिषीय विशेषज्ञ या पंडित के पास जाने की आवश्यकता भी नहीं होती है। सरल परिभाषा में कहें तो, किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत किसी शुभ समय पर करने को ही शुभ मुहूर्त कहा गया है।
पंचांग अनुसार, दिन और रात को मिलकर एक दिन में कुल 24 घंटे का समय होता है और उन्हीं 24 घंटों को देखें तो, प्रात: 6 बजे से लेकर दिन-रात मिलाकर प्रात: 5 बजकर 12 मिनट तक कुल 30 मुहूर्त निकलते हैं। जिनमे से हर एक मुहूर्त करीब-करीब 48 मिनट का होता है।
जैसा हमने आपको बताया कि हिन्दू पंचांग अनुसार एक ही दिन में कुल तीस मुहूर्त होते हैं। आइये अब आपको बताते हैं इन सभी मुहूर्तों के नाम और समय:
पहला मुहूर्त रुद्र मुहूर्त होता है। जो प्रात: 6 बजे शुरू होता है। दूसरा मुहूर्त बादर होता है, जो रूद्र मुहूर्त के ठीक अड़तालीस (48) मिनट बाद होता है। इसके बाद फिर क्रमश: आहि, मित्र, पितृ, वसु, वराह, विश्वेदेवा, विधि, सप्तमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातृ, कण्ड, अदिति, जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम मुहूर्त आते हैं। जिनका समय भी 48-48 मिनट का ही होता है।
किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के लिए पंचांग के साथ-साथ माह, तिथि, वार एवं नक्षत्र भी बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। चूँकि हम सभी जानते हैं कि, हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाला हर एक पर्व और त्यौहार वैदिक पंचांग की गणना के आधार पर ही निकाला जाता है। ये पंचांग अपने नाम अनुसार पाँच अंगों का एक ऐसा समावेश होता है। इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। आइये इन सभी पाँच अंगों अनुसार जानते हैं शुभ मुहूर्त 2021:-
शुभ मुहूर्त 2021: तिथि
जिस प्रकार अंग्रेजी कैलेंडर एक तारीख से ही शुरू होता है। उसी तरह वैदिक पंचांग भी एक तिथि होती है। इन दोनों में एक सबसे बड़ा अंतर जो देखा जाता है, वो ये होता है कि हर एक तारीख़ रात के बारह बजे से शुरु होकर अगली रात 12 बजे बदल जाती है। लेकिन हर एक तिथि, एक सूर्योदय से शुरु होकर दूसरे सूर्योदय तक व्याप्त रहती है। कई बार स्थिति ऐसी बन जाती है कि एक ही दिन में दो तिथियाँ भी आ जाती हैं। इनमें से जो तिथि एक भी सूर्योदय नहीं देख पाती वो क्षय तिथि कहलाती है। जबकि जो तिथि दो सूर्योदय तक व्याप्त रहती है, वो वृद्धि तिथि होती है।
पंचांग के हर एक माह में कुल तीस तिथियाँ होती हैं। जिनमें से जहाँ 15 कृष्ण पक्ष की तिथि होती हैं, तो वहीं 15 ही शुक्ल पक्ष की तिथियाँ भी होती हैं। पंचांग अनुसार,शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहते हैं। इन सभी तिथियों की स्पष्ट जानकारी के अनुसार ही वर्ष 2021 के सभी शुभ मुहूर्त की गणना की गई है। आइये जानते हैं सभी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तिथियों के नाम।
शुक्ल पक्ष- प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा
कृष्ण पक्ष- प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या
नोट: हिन्दू धर्म में बहुत से ऐसे कर्मकांड बताए गया हैं, जिन्हे कुछ विशेष तिथियों में शुरू करना वर्जित होता है। जैसे अमावस्या या फिर पूर्णिमा के दिन किसी भी तरह का ग्रह प्रवेश करना बेहद अशुभ माना जाता है।
शुभ मुहूर्त 2021: वार/ दिन
वार को ही दिन कहा जाता है। पंचांग अनुसार हर एक सप्ताह/हफ्ते में कुल सात वार या दिन बताए गए हैं। जो सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार होते हैं। इनमें से हर एक वार की अपनी एक विशेष प्रकृति होती है, जिनके अनुसार ही कोई भी शुभ मुहूर्त निर्धारित किया जाता है।
नोट: कुछ विशेष तिथियों की तरह ही कई ऐसे वार/दिन होते हैं, जिस दौरान कोई भी धार्मिक कर्मकांड करना अशुभ माना गया है। उदाहरण के लिए मंगलवार के दिन कई कार्य करना वर्जित होता है। यही कारण है कि किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के समय वार/दिन का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
नक्षत्र | राशि | स्वामी ग्रह | देवता | डिग्री |
अश्विनी | मेष राशि | केतु | अश्विनी कुमार | 0 - 13:20 डिग्री |
भरणी | मेष राशि | शुक्र | यम | 13°20' से 26°40' |
कृतिका | मेष और वृषभ राशि | सूर्य | अग्नि | मेष 26°40' से वृषभ 10°00' |
रोहिणी | वृषभ राशि | चन्द्रमा | ब्रह्मा | 10°00' से 23°20' |
मृगशिरा | वृषभ और मिथुन राशि | मंगल | सोम | वृषभ 23°20' से मिथुन 6°40' |
आर्द्रा | मिथुन राशि | राहु | रूद्र | 6°40' से 20°00' |
पुनर्वसु | मिथुन और कर्क राशि | बृहस्पति | अदिति | मिथुन 20°00' से कर्क 3°20' |
पुष्य | कर्क राशि | शनि | बृहस्पति | 3°20' से 16°40' |
अश्लेषा | कर्क राशि | बुध | नाग | 16°40' से 30°00' |
मघा | सिंह राशि | केतु | पितृ (पूर्वज ) | 0°00' से 13°20' |
पूर्व फाल्गुनी | सिंह राशि | शुक्र | भगा | 13°20' से 26°40' |
उत्तरा फाल्गुनी | सिंह और कन्या राशि | सूर्य | आर्यानम | सिंह 26°40' से कन्या 10°00' |
हस्त | कन्या राशि | चन्द्रमा | सूर्य | 10°00' से 23°20' |
चित्रा | कन्या और तुला राशि | मंगल | तवशार या विशकर्मा | कन्या 23°20' से तुला 6°40' |
स्वाति | तुला राशि | राहु | वायु देव | 6°40' से 20°00' |
विशाखा | तुला और वृश्चिक राशि | बृहस्पति | इन्द्राग्नि | तुला 20°00' से वृश्चिक 3°20' |
अनुराधा | वृश्चिक राशि | वृश्चिक | मित्र | 3°20' से 16°40' |
ज्येष्ठा | वृश्चिक राशि | बुध | इंद्र | 16°40' से 30°00' |
मूल | धनु राशि | केतु | निरित्ति (निर्चर) | 0°00' से 13°20' |
पूर्वाषाढ़ा | धनु राशि | शुक्र | एपास | 13°20' से 26°40' |
उत्तराषाढ़ा | धनु और मकर राशि | सूर्य | विश्वदेव | धनु 26°40' से मकर 10°00' |
अभिजीत | मकर राशि | बुध | ब्रह्मा | 06° 40' से 10° 53' 20 |
श्रावण | मकर राशि | चंद्रमा | विष्णु | 10°00' से 23°20' |
धनिष्ठा | मकर और कुम्भ राशि | मंगल | वासु | मकर 23°20' से कुम्भ 6°40' |
शतभिषा | कुम्भ राशि | राहु | वरुण देव | 6°40' से 20°00' |
पूर्वाभाद्रपद | कुम्भ और मीन राशि | बृहस्पति | अज्याआपादा | कुम्भ 20°00' से मीन 3°20' |
उत्तराभाद्रपद | मीन राशि | शनि | अहिर बुध्यान | 3°20' से 16°40' |
रेवती | मीन राशि | बुध | पुष्पन | 16°40' से 30°00' |
नोट: बता दें कि शुभ मुहूर्त 2021 की जानकारी उपरोक्त दिए गए विवरण के आधार पर ही की गई है।
पंचांग अनुसार, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर कुल 27 योग बताए गए हैं, जिनका मुहूर्त के दौरान अपना-अपना अलग महत्व होता है। जिनमें से जहाँ सभी 27 योगों में से 9 योगों को अत्यंत अशुभ माना जाता है, तो वहीं कई योगों को शुभ भी माना जाता है। अशुभ योगों में भी कर्मकांड को करना वर्जित होता है। उन अशुभ 9 योगों के अलावा शेष सभी पंचांग योग अपनी शुभ प्रकृति और स्थिति के अनुसार जातक को उत्तम फल देने में सक्षम होते हैं। आइए अब सभी 27 योगों की स्थिति पर डालते हैं एक नज़र:-
पंचांग योग | शुभ/अशुभ | राशि अंश और कला के अनुसार पंचांग योग |
1. विष्कुम्भ योग | अशुभ | 0 राशि 0 अंश 0 कला से 0 राशि 13 अंश 20 कला तक |
नोट: विष्कुम्भ का अर्थ होता है विष से भरा हुआ घड़ा। अपने नाम के अनुसार ही ये योग अशुभ माना जाता है। ऐसे में इस योग में किये गए किसी भी कार्य में अशुभ फलो की प्राप्ति होती है।
2. प्रीति योग | शुभ | 0 राशि 13 अंश 20 कला से 0 राशि 26 अंश 40 कला तक |
नोट: प्रीति का अर्थ होता है प्रेम। अपने नाम के अनुसार ही इस योग के दौरान किए जाने वाले कार्यों से व्यक्ति को मान और सम्मान की प्राप्ति होती है तथा इस दौरान अपने झगड़ों को समाप्त करने के लिए सुलह करने का प्रयास भी इसी दौरान किया जा सकता है और रूठे हुए अपनों को मनाया जा सकता है।
3. आयुष्मान योग | शुभ | 0 राशि 26 अंश 40 कला से 1 राशि 10 अंश 0 कला तक |
नोट: आयुष्मान का अर्थ होता है लंबी आयु वाला। ऐसे में इस योग के दौरान आयोजित कार्यों में दीर्घकाल तक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। ऐसे सभी कार्य जो दीर्घावधि के लिए हों , जैसे: विवाह, विद्यारंभ आदि, इस दौरान किए जा सकते हैं।
4. सौभाग्य योग | शुभ | 1 राशि 10 अंश 0 कला से 1 राशि 23 अंश 20 कला तक |
नोट: सौभाग्य का अर्थ है उत्तम भाग्य। ऐसे में ये योग शुभ होता है और इस दौरान किए जाने वाले कार्यों से बेहद अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं। एक उत्तम वैवाहिक जीवन के लिए यह योग सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है।
5. शोभन योग | शुभ | 1 राशि 23 अंश 20 कला से 2 राशि 6 अंश 40 कला तक |
नोट: शोभन का अर्थ होता है सुंदर। इस योग के दौरान यात्रा करना या किसी व्यवसाय की शुरुआत करना बेहद अच्छा होता है। इससे आपको भविष्य में आनंद की अनुभूति होती है तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
6. अतिगण्ड योग | अशुभ | 2 राशि, 6 अंश 40 कला से 2 राशि 20 अंश 0 कला तक |
नोट: अतिगण्ड का अर्थ होता है दुख देने वाला। ऐसे में इस योग में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य को करने से परहेज करना चाहिए, अन्यथा ऐसे कार्य मानसिक तनाव के साथ-साथ दुख, अवसाद और निराशा भी दे सकते हैं।
7. सुकर्मा योग | शुभ | 2 राशि, 20 अंश 0 कला से 3 राशि 3 अंश 20 कला तक |
नोट: सुकर्मा का अर्थ होता है अच्छे कर्म वाला। ऐसे में अपने नाम के अनुसार ही ये योग आपको हर कार्य में सफलता के साथ-साथ बेहद शुभ फलों की प्राप्ति कराता है। इस दौरान परिवार में कोई भी शुभ या मंगल कार्यक्रम कराना, नौकरी की शुरूआत करना, आदि इस योग के दौरान अति उत्तम रहता है।
8. धृति योग | शुभ | 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक |
नोट: शास्त्रों अनुसार किसी भी कार्य के शुभारंभ के लिए इस योग का होना बेहद उत्तम होता है। यही कारण है कि इस योग में किसी का शिलान्यास कराना, ग्रह प्रवेश करना, मकान की नींव रखना,भूमि पूजन करना, वाहन ख़रीदना ,आदि जैसे कार्य इस योग में अत्यंत अच्छे परिणाम देते हैं।
9. शूल योग | अशुभ | 3 राशि 16 अंश 40 कला से 4 राशि 0 अंश 0 कला तक |
नोट: शूल का अर्थ होता है कांटा। ऐसे में इस योग के दौरान शुरू किया गया कोई भी कार्य पीड़ा पहुँचाता है। यही वजह है कि इस योग में कोई भी कार्य आरंभ करना अशुभ माना गया है।
10. गण्ड योग | अशुभ | 4 राशि 0 अंश 0 कला से 4 राशि 13 अंश 20 कला तक |
नोट: यह एक अशुभ योग होता है, जिस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। अन्यथा उस कार्यों में उलझनें और कई प्रकार की समस्याओं में वृद्धि होती रहती है।
11. वृद्धि योग | शुभ | 4 राशि 13 अंश 20 कला से 4 राशि 26 अंश 40 कला तक |
नोट: वृद्धि योग तरक्की देने वाला योग होता है। इसलिए इस योग में नया बिज़नेस शुरू करना या नौकरी शुरू करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति को वृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
12. ध्रुव योग | शुभ | 4 राशि 26 अंश 40 कला से 5 राशि 10 अंश 0 कला तक |
नोट: ध्रुव योग में हर प्रकार के स्थायित्व देने वाले कार्य करना शुभ सिद्ध होता है। जैसे कि शिलान्यास करना, ग्रह प्रवेश कराना या इमारत का निर्माण करना शुभ जबकि अस्थिर प्रकृति के कार्यों के लिए यह योग कुछ अनुकूल माना गया है।
13. व्याघात योग | अशुभ | 5 राशि 10 अंश 0 कला से 5 राशि 23 अंश 20 कला तक |
नोट: अपने नाम के अनुसार ही यह योग जीवन में पीड़ा और घात देने का कार्य करता है, इसलिए ये योग बेहद अशुभ माना गया है। इसी कारण हर प्रकार के नए कार्यों को इस योग में करने से बचना चाहिए।
14. हर्षण योग | शुभ | 5 राशि 23 अंश 20 कला से 6 राशि 6 अंश 40 कला तक |
नोट: जैसा नाम से ही स्पष्ट है कि हर्षण हर्ष देने वाला योग है। इसलिए इस योग के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य किया जा सकता है। उस कार्य से न केवल आपको प्रसन्नता प्राप्त होगी बल्कि सफलता भी मिल सकेगी। हालांकि इस योग के दौरान कोई भी पूर्वजों अर्थात पितरों से संबंधित कार्य करने से बचना चाहिए।
15. वज्र योग | अशुभ | 6 राशि 6 अंश 40 कला से 6 राशि 20 अंश 0 कला तक |
नोट: वज्र का अर्थ होते है एकदम कठोर, इसलिए इसे अशुभ योगों में गिना जाता है। इस योग के दौरान कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे आपको पीड़ा पहुंचे। विशेष रूप से इस योग में वाहन खरीदना, मूल्यवान धातु खरीदना, नए वस्त्र खरीदना, आदि कार्य करना वर्जित होता है।
16. सिद्धि योग | शुभ | 6 राशि 20 अंश 0 कला से 7 राशि 3 अंश 20 कला तक |
नोट: सिद्धि योग यानी सफलता प्रदान करने वाला योग। अपने नाम के अनुरूप ही इस योग में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य किये जाने से सिद्धि अर्थात सफलता प्राप्त होती है। मंत्र जाप में सिद्धि के लिए भी यह योग अत्यंत शुभ एवं फलदायक साबित होता है।
17. व्यतिपात योग | अशुभ | 7 राशि 3 अंश 20 कला से 7 राशि 16 अंश 40 कला तक |
नोट: व्यतिपात योग में किये जाने वाले कार्य से नुकसान पहुँचने की आशंका अधिक रहती है। यही कारण ही कि इस योग में कोई भी अच्छा कार्य करने से बचना चाहिए, अन्यथा उसका परिणाम बेहद प्रतिकूल सिद्ध होता है।
18. वरीयान योग | शुभ | 7 राशि 16 अंश 40 कला से 8 राशि 0 अशं 0 कला तक |
नोट: वरीयान योग हर शुभ और मांगलिक कार्य में सफलता दिलाने वाला योग है। जिस दौरान किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ किया जा सकता है, लेकिन इस योग में भी पूर्वजों या पितरों से संबंधित कर्मकाण्ड करने से बचना चाहिए।
19. परिघ | अशुभ | 8 राशि 0 अंश 0 कला से 8 राशि 13 अंश 20 कला तक |
नोट: परिघ योग एक बेहद अशुभ योग माना जाता है, लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसे कर्मकांड बताएँ गए हैं , जिनमें यह योग विशेष अनुकूल फल देने वाला साबित होता है। विशेष रूप से अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने और उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने में यह योग अत्यंत अनुकूल फल प्रदान करते हुए आपको विजय दिलाता है।
20. शिव योग | शुभ | 8 राशि 13 अंश 20 कला से 8 राशि 26 अंश 40 कला तक |
नोट: इस योग का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है और अपने नाम के अनुसार ही ये योग बेहद शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। विशेष रूप से पूजा आराधना के लिए इस योग का महत्व बेहद सर्वोत्तम माना गया है।
21. सिद्ध योग | शुभ | 8 राशि 26 अंश 40 कला से 9 राशि 10 अंश 0 कला तक |
नोट: ऐसे सभी कार्य जिनमें कुछ न कुछ सीख लेने की आवश्यकता पड़े, उसके लिए सिद्ध योग अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस योग के दौरान मंत्र दीक्षा लेने अथवा विद्यारंभ करने में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
22. साध्य योग | शुभ | 9 राशि 10 अंश 0 कला से 9 राशि 23 अंश 20 कला तक |
नोट: किसी भी विद्या या मंत्र को सीखने के लिए साध्य योग बेहद उत्तम साबित होता है। इस योग के फलस्वरूप व्यक्ति को इन कार्यों में तो सफलता मिलती ही है, साथ ही व्यक्ति इन कार्यों को एकाग्रचित्त होकर ग्रहण करने में भी सफल होता है।
23. शुभ योग | शुभ | 9 राशि 23 अंश 20 कला से 10 राशि 6 अंश 40 कला तक |
नोट: शुभ योग अपने नाम के अनुसार ही अत्यंत शुभ और सफलतादायक सिद्ध होता है। इस दौरान कोई भी कार्य आरंभ किया जा सकता है और इन सभी कार्यों में ये योग व्यक्ति को अनुकूल व प्रसिद्धि प्रदान करता है। इस योग में किए गए कार्य व्यक्ति को महान बनाते हैं।
24. शुक्ल योग | शुभ | 10 राशि 6 अंश 40 कला से 10 राशि 20 अंश 0 कला तक |
नोट: इस योग में सभी प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं और व्यक्ति को ईश्वर की असीम कृपा भी मिलती है। मंत्र सिद्धि के लिए भी ये योग विशेष शुभ साबित होता है। इस योग में किए गए कार्यों में व्यक्ति को अपार आनंद की प्राप्ति होती है।
25. ब्रह्म योग | शुभ | 10 राशि 20 अंश 0 कला से 11 राशि 3 अंश 20 कला तक |
नोट: ब्रह्म योग एक अत्यंत शुभ योग है। इसमें किसी भी ऐसे कार्य को किया जा सकता हैं, जिसमें धैर्य और शांति की आवश्यकता हो। जैसे: हर प्रकार के विवाद, किसी अपने किसी रूठे हुए को मनाने या झगड़े में सुलह कराने के लिए इसी योग को ही देखा जाता है।
26. ऐन्द्र योग | शुभ | 11 राशि 3 अंश 20 कला से 11 राशि 16 अंश 40 अंश तक |
नोट: सभी प्रकार के राजकीय कार्यों के लिए ऐन्द्र योग अत्यंत शुभ फलदायक सिद्ध होता है। इसके साथ ही अपनी इंद्रियों पर संयम रखने के लिए किए जाने वाले यम, नियम और आसन के लिए भी इसी योग का महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस योग में विशेष रूप से सुबह और दोपहर के समय किये जाने वाले शुभ कार्य अधिक अनुकूल, जबकि रात्रि में इससे थोड़े कम अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है।
27. वैधृति योग | अशुभ | 11 राशि 16 अंश 40 अंश से 12 राशि 0 अंश 0 कला तक |
नोट: इस योग की गणना, यूँ तो एक अशुभ योग में होती है, लेकिन इसमें फिर भी कोई ऐसा कार्य जो करना बेहद आवश्यक हो, और जो स्थिर प्रकृति के हों वो इस योग के दौरान किये जा सकते हैं। खासतौर से चलायमान प्रकृति के कार्य इस योग में करने से बचना चाहिए।
उपरोक्त दी गई सभी योगों की जानकारी के आधार पर ही किसी भी शुभ मुहूर्त 2021 की गणना की जाती है। मुहूर्त 2021 के अंतर्गत आपको सभी प्रकार के मुहूर्त की जानकारी उपलब्ध कराई गयी है।
शुभ मुहूर्त 2021: करण
पंचांग अनुसार, कुल 11 करण होते हैं, जिनमें से जहाँ चार स्थिर प्रकृति के, तो वहीं शेष करण चर प्रकृति वाले होते हैं। ऐसे में किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान करणों की स्थिति का आकलन करना भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। आइये जानते हैं सभी 11 करणों के बारे में:
किस्तुघ्न:- यह करण स्थिर करण है।
बव:- यह चर करण होता है।
बालव:- यह भी चर करण है।
कौलव:- ये एक चर करण है।
गर:- यह चर करण है।
तैतिल:- यह भी चर करण है।
वणिज:- यह भी चर करण है।
विष्टि अर्थात भद्रा:- यह चर करण है।
शकुनि:- ये स्थिर करण होता है।
नाग:- यह भी स्थिर करण है।
किसी भी कर्मकांड के लिए उपयुक्त करणों में से विष्टि करण अथवा भद्रा को सबसे अधिक अशुभ माना जाता है। ऐसे में इस दौरान किसी भी नए एवं मांगलिक कार्य का आरम्भ इस करण में करना वर्जित होता है। इसके साथ ही कई धार्मिक कार्यों में भद्रा करण का भी त्याग किया जाता है।
हम उम्मीद करते हैं कि शुभ मुहूर्त 2021 के हमारे इस लेख में आपको सभी शुभ मुहूर्त का समय, मुहूर्त की महत्ता, उपयोगिता एवं अन्य सभी आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली होगी।
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