ग्रहण 2021 के हमारे इस लेख में आपको साल 2021 में होने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण की जानकारी दी जाएगी। साल 2021 में दो सूर्य और दो चंद्र ग्रहण घटित होंगे यानि कुल मिलाकर चार ग्रहण इस साल देखे जाएंगे। इन ग्रहणों का असर दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में देखने को मिलेगा। हमारे इस लेख में आपको यह जानकारी भी दी जाएगी कि ग्रहण के दौरान आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिये। ग्रहण के दौरान लगने वाले सूतक काल के क्या दुष्प्रभाव होते हैं और इनसे कैसे बचा जाता है। इन सारी बातों की जानकारी आपको यहां मिलेगी।
वर्ष 2021 का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून को घटित होगा। सूर्य ग्रहण की इस घटना को उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में, यूरोप और एशिया में आंशिक रुप से देखा जा सकेगा वहीं उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रुस में इसे पूर्ण रुप से देखा जा सकेगा। साल का यह पहला सूर्य ग्रहण वलयाकार होगा। वलयाकार सूर्य ग्रहण से तात्पर्य है कि इसमें चंद्रमा सूर्य के केवल केंद्रीय भाग को ही ढकेगा। चूंकि यह सूर्य ग्रहण भारत में ना तो पूर्ण रुप से और ना ही आंशिक रुप से दृश्य होगा इसलिये भारत में इसका सूतक मान्य नहीं होगा।
दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ |
सूर्य ग्रहण समाप्त |
ग्रहण का प्रकार |
10 जून |
13:42 से |
18:41 बजे तक |
वलयाकार |
सूर्य ग्रहण की घटना साल 2021 में दो बार घटित होगी और साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 4 दिसंबर 2021को घटित होगा। यह एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा, यानि कि इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रुप से आच्छादित कर लेगा। यह सूर्य ग्रहण अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, अटलांटिक के दक्षिणी भाग में देखा जाएगा।
दिनांक |
सूर्य ग्रहण प्रारंभ |
सूर्य ग्रहण समाप्त |
ग्रहण का प्रकार |
4 दिसंबर |
10:59 बजे से |
15:07 बजे तक |
पूर्ण |
नोट- ग्रहण के समय की सारी भविष्यवाणियां नासा के GSFC फ्रेड एस्पेनक द्वारा दी गई हैं।
यहाँ सूर्य ग्रहण 2021 के बारे में विस्तार से जानें
सूर्य ग्रहण तीन प्रकार से लगता है जिनके बारे में नीचे बताया गया है। सूर्य ग्रहण के प्रकार
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्र आ जाता है और चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण रुप से ढक जाता है तो उसे पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं।
इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य को आंशिक रुप से ढक लेता है और सूर्य का पूरा प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँचता।
सूर्य ग्रहण की इस घटना में चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढकता केवल मध्य भाग को ढकता है। इस स्थिति में सूर्य एक रिंग की तरह प्रतीत होता है।
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इस लेख में आपको पहले ही बताया जा चुका है कि साल 2021 में दो बार चंद्र ग्रहण की घटना घटित होगी। साल का पहला चंद्र ग्रहण 26 मई को घटित होगा और यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। पूर्ण चंद्र ग्रहण की घटना तब घटित होती है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है। यह चंद्र ग्रहण पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका में देखा जायेगा।
दिनांक |
चंद्र ग्रहण प्रारंभ |
चंद्र ग्रहण समाप्त |
ग्रहण का प्रकार |
26 मई |
14:17 बजे से |
19:19 बजे तक |
पूर्ण |
साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को घटित होगा, जोकि एक आंशिक चंद्र ग्रहण होगा। आंशिक चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रुप से ढक लेती है।
दिनांक |
चंद्र ग्रहण प्रारंभ |
चंद्र ग्रहण समाप्त |
ग्रहण का प्रकार |
19 नवंबर |
11:32 बजे से |
17:33 बजे तक |
आंशिक |
चंद्र ग्रहण 2020 के बारे में विस्तार से जानें
साल 2021 के आखिरी चंद्र ग्रहण को अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में देखा जा सकता है। चंद्र ग्रहण के प्रकार
सूर्य ग्रहण की तरह ही चंद्र ग्रहण भी तीन प्रकार का होता है। इसके बारे में नीचे बताया गया है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण तब घटित होता है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है और सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता। इस स्थिति में पृथ्वी चंद्रमा को पूर्णत: ढक लेती है।
आंशिक चंद्र ग्रहण में पृथ्वी चंद्रमा को आंशिक रुप से ढकती है।
यह वह स्थिति है जब चंद्र ग्रह पृथ्वी की पेनुम्ब्रा से होकर गुजरता है। इसके चलते चंद्रमा पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश कटा हुआ महसूस होता है। ग्रहण की यह स्थिति उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहलाती है।
ज्योतिषीय समाधान के लिये ज्योतिष से पूछें प्रश्न
सूर्य और चंद्र ग्रहण की घटना घटित होने के दौरान एक समय काल वो भी होता है, जब किसी भी तरह के शुभ काम को करना वर्जित माना जाता है। इस काल को ही सूतक काल कहा जाता है। यदि सूतक काल में कोई भी शुभ काम किया जाए तो उससे शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती। हालांकि कुछ ऐसे उपाय भी हैं जिनको करने से ग्रहण के अशुभ प्रभावों से आप बच सकते हैं। इन उपायों को बताने से पहले आइये सूतक काल को और बेहतर तरीके से समझते हैं।
सनातन धर्म में सूतक के दौरान शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता है, लेकिन सूतक काल कब तक रहेगा इसके बारे में कैसे पता चलता है, इसकी गणना कैसे की जाती है? यदि आप नहीं जानते तो आइये हम आपको बताते हैं। सूतक काल की गणना करने के लिये सबसे आवश्यक जानकारी है सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का समय। यदि आप जानते हैं कि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण कितने बजे से शुरु होगा तो आप आसानी से सूतक काल की गणना कर सकते हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान ग्रहण शुरु होने से पहले के 12 घंटे सूतक काल कहलाते हैं वहीं चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्र ग्रहण शुरु होने से पहले के 9 घंटे सूतक काल कहलाते हैं। जैसे ही ग्रहण समाप्त होता है सूतक काल का भी अंत हो जाता है। सूतक काल के दौरान जिन कामों को करना वर्जित माना जाता है उसकी जानकारी आपको नीचे दी जा रही है।
ग्रहण 2021 काल के दौरान गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। खासकर तब जब सूतक काल प्रभावी हो। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान गर्भ में पल रहे बचे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वही कढ़ाई, बुनाई, सिलाई जैसे काम इस समय न करें, नहीं तो ग्रहण का नकारात्मक असर शिशु के अंगों पर पड़ सकता है। ग्रहण के दौरान नीचे दिये गये मंत्रों का जाप करने से सकारात्मक फलों की प्राप्ति होती है।
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात"
“ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्”
ग्रहण 2021 के अपने इस लेख में अब हम आपको बताएंगे कि सूर्य और चंद्र ग्रहण से जुड़ी पौराणिक मान्यता क्या है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा से राहु और केतु की शत्रुता के कारण ग्रहण लगता है। माना जाता है कि जब समुद्र मंथन के बाद समुद्र से 14 रत्न निकले तो उनमें से एक रत्न अमृत भी था। अमृत को पीकर हर कोई अमरता पा सकता था। अमरत्व पाने के लिये असुरों और देवताओं में जंग शुरु हो गई। यदि असुरों के द्वारा अमृत का सेवन कर लिया जाता तो यह बहुत घातक होता इसलिये भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण करके असुरों को अपने वश में कर लिया और यह कहा कि, अमृत दोनों पक्षों में बांटा जाना चाहिये। इसके बाद विष्णु भगवान ने बड़ी चतुराई से देवताओं को अमृत और असुरों को सामान्य जल देना शुरु कर दिया, लेकिन उनकी इस चालाकी को स्वरभाऩु नाम का एक राक्षस समझ गया और वह देवताओं का रुप धारण करके देवताओं की कतार में बैठ गया।
स्वरभानु असुर है इस बात की खबर सबसे पहले सूर्य और चंद्र देव को लगी। अमृत बांटते-बांटते मोहिनी रुप धारण किये हुए विष्णु भगवान जब स्वरभानु के पास पहुंचे तो सूर्य और चंद्र देव ने उन्हें सचेत किया कि यह एक असुर है, हालांकि तब तक अमृत की कुछ बूंदें स्वरभानु के कंठ में चली गई थीं। विष्णु भगवान को जब यह बात पता चली तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया, इसके बाद से स्वरभानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाने लगा। चुंकि सूर्य और चंद्र देव ने राहु-केतु (स्वरभानु) का भेद भगवान विष्णु को बताया था इसलिये राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगाते हैं ऐसा माना जाता है।
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