सूर्य ग्रहण 2021 को लेकर आपके मन में उठ रहे सारे सवालों के जवाब आपको हमारे इस लेख से प्राप्त होंगे। हमारे इस लेख से आपको पता चलेगा कि साल 2021 में सूर्य ग्रहण किन तारीखों को घटित होगा। सूर्य ग्रहण की दृश्यता के बारे में भी आपको जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही सूर्य ग्रहण 2021 के दौरान आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिये इसके बारे में भी आपको विस्तार से बताया जाएगा। इन सारी बातों के बारे में बात करने से पहले आइये जान लेते हैं कि साल 2021 में सूर्य ग्रहण कब है।
सूर्य ग्रहण वह खगोलीय घटना है जिसमें सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है और इसके कारण सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता। सूर्य ग्रह की घटना को खगोल विज्ञान के अलावा ज्योतिष विज्ञान में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहण के दौरान लगने वाले सूतक काल को ज्योतिषीय दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता और इस दौरान हर किसी को सतर्क रहने की सलाह दी जाती है। जो महिलाएं गर्भवती हैं उन्हें इस दौरान घर से बाहर न निकलने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं।
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | सूर्य ग्रहण का प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
10 जून 2021 | 13:42 से | 18:41 बजे तक | वलयाकार सूर्य ग्रहण | यूरोप और एशिया में आंशिक रुप से उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रुस में पूर्ण रुप से |
दिनांक | सूर्य ग्रहण प्रारंभ | सूर्य ग्रहण समाप्त | सूर्य ग्रहण का प्रकार | दृश्य क्षेत्र |
4 दिसंबर 2021 | 10:59 बजे से | 15:07 बजे तक | पूर्ण सूर्य ग्रहण | अंटार्कटिका, दक्षिण अफ्रीका, अटलांटिक के दक्षिणी भाग में |
नोट- ग्रहण के समय की सारी भविष्यवाणियां नासा के GSFC फ्रेड एस्पेनक द्वारा दी गई हैं।
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ऊपर दी गई तालिकाओं से आपको पता चल गया होगा कि साल 2021 में सूर्य ग्रहण की घटना कब घटित होगी और इनका दृश्य क्षेत्र कहां होगा। आपको बता दें कि सूर्य ग्रहण एक ऐसी घटना है जो हर साल घटित होती है। साल 2021 में सूर्य ग्रहण की दो घटनाएं होंगी। पहला सूर्य ग्रहण 10 जून जबकि दूसरा सूर्य ग्रहण 4 दिसंबर को होगा। पहले सूर्य ग्रहण को यूरोप एशिया, उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और रुस में देखा जाएगा। जबकि दूसरा सूर्य ग्रहण दक्षिण अफ्रीका, अटलांटिक के दक्षिणी भाग और अंटार्कटिका से देखा जाएगा। सूर्य ग्रहण तीन तरह का होता है जिसके बारे में नीचे बताया गया है।
यह सूर्य ग्रहण तब घटित होता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है और चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण रुप से ढक जाता है।
यह सूर्य ग्रहण की वह स्थिति होती है जिसमें चंद्रमा सूर्य को आंशिक रुप से ढक लेता है और सूर्य का पूरा प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँचता।
सूर्य ग्रहण की इस घटना में हालांकि चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढकता लेकिन सूर्य के मध्य भाग को ढक लेता है। इस स्थिति में सूर्य एक रिंग की तरह प्रतीत होता है, इसे ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
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सूर्य सारे सौरमंडल का सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। सूर्य की गति से ही धरती पर कई परिवर्तन देखने को मिलते हैं। सूर्य के चलते ही धरती पर ऋतुओं में परिवर्तन आता है और दिन-रात होते हैं। ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है और यह पिता, सरकारी नौकरी या किसी भी क्षेत्र में उच्च पद का नेतृत्व करता है। ज्योतिष में सूर्य का गोचर एक महत्वपूर्ण घटना है। सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने रहता है। इसलिये हर साल में सूर्य के 12 गोचर होते हैं। जिस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन करता है तो उस दिन को संक्रांति कहा जाता है। जिस भी राशि में सूर्य का गोचर होता है उस राशि के नाम से ही उस संक्रांति का नाम लिया जाता है। सभी 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति को बहुत अहम माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर आते हैं। बता दें कि मकर शनि के स्वामित्व वाली राशि है। मकर संक्रांति के अवसर पर पूरे भारत वर्ष में मेलों का आयोजन किया जाता है।
सौर मंडल में सूर्य सबसे प्रकाशवान ग्रह है और इसका सबसे नजदीकी ग्रह बुध है। यदि कुंडली में सूर्य और बुध एक साथ हों तो बुधादित्य योग का निर्माण होता है। यह योग अति शुभ माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार यदि यह योग अच्छी राशि में बन रहा है तो ऐसे जातक की बौद्धिक क्षमता बहुत प्रबल होती है। ऐसा व्यक्ति बड़े पद पर विराजमान होता है। इसके साथ ही समाज भी ऐसा व्यक्ति नाम कमाता है।
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की शत्रुता और मित्रता पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। ग्रहों की युति और उनका आपस में संबंध यह निर्धारित करता है कि जातक को कैसे फल मिलेंगे। यदि कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह के साथ विराजमान हो तो वह अच्छे फल नहीं दे पाता वहीं मित्र ग्रह के साथ विराजमान होने पर यह अच्छे फल देता है। बात करें सूर्य ग्रह की तो शनि और शुक्र ग्रह इसके शत्रु हैं वहीं मंगल, गुरु और चंद्रमा इसके मित्र हैं। अपने मित्र ग्रहों के साथ युति बनाकर यह बलशाली हो जाता है वहीं शत्रु ग्रहों के साथ बैठकर इसकी शक्ति शीर्ण हो जाती है। शत्रु ग्रह के साथ बैठे पीड़ित सूर्य के फल भी शुभ नहीं होते।
सूर्य ग्रह का वैदिक पंचांग में भी बड़ा महत्व है, वैदिक पंचांग की गणनाएं भी सूर्य की गति पर ही निर्भर करती हैं। इसमें तिथि की गणना एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की अवधि को कहा जाता है। काल पुरुष की कुंडली में सूर्य ग्रह सिंह राशि का नेतृत्व करता है। इसके साथ ही सूर्य देव कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों के भी स्वामी हैं। सूर्य ग्रह मेष राशि में उच्च तथा तुला राशि में नीच का होता है।
भारतीय पौराणिक शास्त्रों में सूर्य ग्रहण की घटना को लेकर एक कथा का जिक्र किया जाता है जिसके बारे में हम आज आपको बताएंगे। इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के बाद समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुए थे और इन रत्नों में से एक था अमृत। जो भी शख्स अमृत पान कर लेता वो अमर हो जाता। इसलिये अमृत को लेकर असुरों और देवताओं में लड़ाई हुई और असुर देवताओं से अमृत कलश लेकर भागने लगे। इसके बाद देवता मदद मांगने भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण करके असुरों को अपने वश में कर लिया और बड़ी चतुराई से देवताओं को अमृत और असुरों को साधारण जल देने लगे। यह बात स्वरभानु नाम के एक असुर को पता चल गई और वह रुप बदलकर देवताओं की कतार में बैठ गया, यह बात सूर्य और चंद्र देव को पता चल गई और उन्होंने विष्णु भगवान को यह बात बताई भगवान विष्णु को इस बात पर क्रोध आया और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया। हालांकि विष्णु भगवान को यह बात पता चलने से पहले अमृत की कुछ बूंदें स्वर भानु के गले में जा चुकी थीं इसलिये सिर धड़ से अलग होने के बावजूद भी वह मरा नहीं। स्वरभानु के सिर और धड़ को ही राहु और केतु कहा जाता है और माना जाता है कि सूर्य और चंद्र देव ने राहु-केतु (स्वरभानु) का भेद बताया था इसलिये वह सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगाते हैं।
खगोल विज्ञान में सूर्य ग्रहण की घटना को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। सूर्य ग्रहण की घटना सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के बीच घटती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो ग्रहण वह घटना है जिसमें किन्हीं दो खगोलीय पिंडों के बीच एक अन्य पिंड आ जाता है। इसी तरह सूर्य ग्रहण की घटना में भी सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्र ग्रह आ जाता है जिससे पृथ्वी पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसी घटना को खगोल विज्ञान में सूर्य ग्रहण कहा जाता है। सूर्य ग्रहण मुख्य रुप से तीन प्रकार (पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण) से हो सकता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से आच्छादित कर देता है और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता। दूसरी स्थिति है आंशिक सूर्य ग्रहण की इस स्थिति में चंद्रमा सूर्य को आंशिक रुप से ढक देता है वहीं वलयाकार सूर्य ग्रहण में चंद्रमा सूर्य के केवल मध्य भाग को ही ढकता है। सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ ऐसी बातें हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिये। इन बातों के बारे में आप नीचे पढ़ सकते हैं।
सूर्य और चंद्र दोनों ग्रहों के ग्रहण काल के दौरान ऐसा समय काल भी होता है जिसमें किसी भी शुभ कामों को करने की मनाही होती है। सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक काल का पता लगाने के लिये आपको सूर्य ग्रहण का समय पता होना चाहिये। सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक काल चार पहर पहले से शुरु हो जाता है और प्रत्येक पहर 3 घंटे का होता है, अत: सूतक काल सूर्य ग्रहण शुरु होने से 12 घंटे पहले शुरु हो जाता है।
हिंदू शास्त्रों में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता, इसीलिये ग्रहण के दौरान कुछ सावधानियां बरतने के सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान शुरु किये गये काम असफल हो जाते हैं। यही वजह है कि ग्रहण काल और ग्रहण के दौरान सूतक काल के समय भी शुभ काम नहीं करने चाहिये। तो आइये अब उन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर नजर डालते हैं ग्रहण और इसके सूतक काल के दौरान जिनको करना वर्जित माना जाता है।
यदि आप नीचे दिये गए मंत्र का पूर्ण श्रद्धा से सूर्य ग्रहण के दिन जाप करते हैं तो आप पर इसके दुष्प्रभाव नहीं पड़ते। इस मंत्र का जाप 1008 या 108 बार करें।
इस मंत्र के साथ-साथ आप सूर्य देव के बीज और तांत्रिक मंत्र का जाप करके भी सूर्य ग्रहण के नकारात्मक प्रभावों से बच सकते हैं। सूर्य ग्रहण के सूतक काल के दौरान सूर्य यंत्र की अराधना करना भी अति शुभ माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण की घटना नई शुरुआत का संकेत देती है, जो लोगों को सफलता और समृद्धि की दिशा आगे बढ़ा सकती है। हालांकि, ये चीजें उनके लिए एक आश्चर्य के रूप में सामने आ सकती हैं, और सांसारिक घटनाओं से जुड़ी हो सकती हैं। हम लोग ज्यादातर सीमित दृष्टिकोण बनाए रखते हैं और और उन विकल्पों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं जो आसानी से मिल जाएं। हालांकि सूर्य ग्रहण के समय कुछ चीजें अस्थायी रुप से अवरुद्ध हो जाती हैं और ऐसे विकल्पों के लिये दरवाजे खुलते हैं जिनके बारे में आपने कभी सोचा भी न हो। हालांकि ग्रहण की घटनाओं को अशुभ माना जाता है लेकिन ग्रहण की घटना आशीर्वाद भी बन सकती है। निर्णय लेने से लेकर, व्यावसायिक संबंधों को स्थापित करने और सही रास्ते को चुनने तक के लिये, इन खगोलीय घटनाओं के दौरान सकारात्मक चीजें होने की संभावना है।
हम आशा करते हैं कि सूर्य ग्रहण 2021 से जुड़ा यह लेख आपको अच्छा लगा होगा और आपको जरुरी जानकारी मिली होगी।
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