उपनयन मुहूर्त 2022 या जनेऊ मुहूर्त 2022 का यह लेख आपको साल 2022 में जनेऊ संस्कार कराने की शुभ तिथि, शुभ दिन और शुभ समय की संपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा। साथ ही हम आपको बताएंगे जनेऊ संस्कार का महत्व, जनेऊ मुहूर्त की गणना करते समय ध्यान रखने योग्य बातें, जनेऊ संस्कार की विधि और भी बहुत सी खास बातें -
हिन्दू धर्म और संस्कारों के अनुसार कुल 16 संस्कार होते हैं, जिनमें यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ संस्कार दशम संस्कार होता है। इसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है। किसी बच्चे का उपनयन संस्कार कर्णवेध संस्कार होने के बाद पूरी रीति-रिवाज़ के साथ किया जाता है। यज्ञोपवीत “यज्ञ” और “उपवीत” दो शब्दों से मिल कर बना है, इसका अर्थ होता है यज्ञ-हवन आदि का अधिकार मिलना।
शास्त्रों के अनुसार बिना जनेऊ संस्कार हुए पूजा-पाठ, व्यापार, और विद्या प्राप्त आदि जैसे कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करना निरर्थक माना जाता है। यह संस्कार एक व्यक्ति के पिछले जन्म के पापों को खत्म करता है। मान्यता है कि इस संस्कार के बाद व्यक्ति का दूसरा जन्म शुरू होता है। इसलिए इस संस्कार को एक शुभ मुहूर्त निकालकर पूरे विधि-विधान से करना अनिवार्य होता है।
इस संस्कार का न केवल धार्मिक महत्व होता है बल्कि विज्ञान के अनुसार जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को ब्लड प्रेशर और हृदय रोग जैसी समस्या नहीं होती है। साथ ही शरीर में दायें कान के पास से जो नसें गुजरती हैं, उनका सीधा संबंध हमारी आंतों से होता है। और जब व्यक्ति मल-मूत्र विसर्जन के समय कान में जनेऊ को लपेटता है, तो इन नसों में दबाव पड़ने की वजह से व्यक्ति का पेट अच्छी तरह से साफ़ हो जाता है।
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नीचे दी गयी सूची में आपको साल 2022 में उपनयन कराने के लिए हर महीने की शुभ तिथि, शुभ दिन और शुभ समय की जानकारी दी जा रही है-
फरवरी उपनयन मुहूर्त 2022 | |||
दिनांक | वार | मुहूर्त की समयावधि | |
02 फरवरी | बुधवार | 08:31 | 14:11 |
03 फरवरी | गुरुवार | 10:37 | 14:07 |
10 फरवरी | गुरुवार | 11:08 | 13:40 |
18 फरवरी | शुक्रवार | 06:57 | 15:23 |
अप्रैल उपनयन मुहूर्त 2022 | |||
दिनांक | वार | मुहूर्त की समयावधि | |
03 अप्रैल | रविवार | 09:03 | 12:37 |
06 अप्रैल | बुधवार | 06:06 | 14:38 |
11 अप्रैल | सोमवार | 07:15 | 12:18 |
21 अप्रैल | गुरुवार | 05:50 | 11:13 |
मई उपनयन मुहूर्त 2022 | |||
दिनांक | वार | मुहूर्त की समयावधि | |
04 मई | बुधवार | 05:38 | 07:33 |
05 मई | गुरुवार | 10:01 | 15:02 |
06 मई | शुक्रवार | 05:37 | 12:33 |
12 मई | गुरुवार | 05:33 | 07:18 |
13 मई | शुक्रवार | 05:32 | 13:03 |
18 मई | बुधवार | 08:57 | 13:18 |
20 मई | शुक्रवार | 05:28 | 16:19 |
जून उपनयन मुहूर्त 2022 | |||
दिनांक | वार | मुहूर्त की समयावधि | |
10 जून | शुक्रवार | 05:23 | 14:56 |
16 जून | गुरुवार | 05:23 | 12:37 |
अन्य सभी मुहूर्त से संबंधित जानकारी के लिए क्लिक करें- शुभ मुहूर्त 2022 (लिंक)
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जनेऊ संस्कार यानि उपनयन संस्कार को करने के पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक और ज्योतिषीय कारण छिपे होते हैं। धार्मिक कारण को देखें तो जनेऊ संस्कार के दौरान पहनाये जाने वाले तीन सूत्र त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माने जाते हैं। जनेऊ में पाँच गाँठ लगाते हैं, जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम व् मोक्ष का प्रतीक होते हैं।
वहीँ अगर उपनयन संस्कार के वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो चिकित्सीय विज्ञान के अनुसार, व्यक्ति के पीठ पर एक बहुत ही सूक्ष्म नस होती है, जो दाएँ कंधे से लेकर कमर तक जाती है और यह विद्युत के प्रवाह की तरह कार्य करती है। जनेऊ इस नस को सही अवस्था में रखकर काम-क्रोध आदि जैसे बुरे विकारों पर नियंत्रण पा लेने में व्यक्ति की मदद करता है। जनेऊ दाएँ कंधे से लेकर कमर तक जाने वाली इस नस को सही अवस्था में रखता है और इंसान के अंदर मानवीय गुणों का विकास करता है। जनेऊ पहनने से बुरे विचार व्यक्ति को परेशान नहीं करते और उसके आयु, बल और बुद्धि में भी वृद्धि होती है।
वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व के साथ-साथ उपनयन संस्कार का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। हम सभी जानते हैं कि ज्योतिष में कुल नौ ग्रह होते हैं, जिन्हें हम मंगल, बुध, सूर्य, चंद्र, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु के नाम से जानते हैं और जनेऊ के तीन धागों की नौ लड़ियों को इन्हीं नवग्रहों का प्रतीक मानते हैं। शास्त्रों के अनुसार जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को नवग्रहों का आशीर्वाद मिलता है।
इसके अलावा जनेऊ के रंग का भी संबंध ज्योतिष से होता है। चलिए आपको समझाते हैं कैसे? हम सभी जानते हैं कि जनेऊ एक सफ़ेद रंग का धाग होता है और सफ़ेद रंग का संबंध शुक्र ग्रह से होता है, जो सौन्दर्य, काम, सुख और कला आदि का कारक माना जाता है। उपनयन संस्कार के दौरान जनेऊ को एक बच्चे को धारण कराने से पहले उसे पीले रंग से रंगा जाता है, और ज्योतिष में पीले रंग का संबंध बृहस्पति ग्रह से होता है, जो ज्ञान, गुरु, अच्छे कर्मों आदि का कारक माना जाता है।
इन महत्वों की वजह से व्यक्ति का उपनयन संस्कार हमेशा शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए। लोग उपनयन संस्कार के लिए मुहूर्त वैसे तो किसी ज्योतिषी या पंडित से निकलवाते हैं, लेकिन इसकी गणना कैसे करते हैं और गणना के दौरान किन बातों का ध्यान रखते हैं, इसकी जानकारी हम आपको नीचे दे रहें हैं।
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जब एक बालक किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश करता है, तब उसका उपनयन यानि जनेऊ संस्कार एक शुभ मुहूर्त में संपन्न किया जाना चाहिए। आईये आपको बताते हैं कि उपनयन मुहूर्त 2022 के लिए शुभ समय के चयन के दौरान आपको किन बातों का ध्यान विशेषतौर पर रखना चाहिए -
हिन्दू पंचांग के अनुसार एक जातक का उपनयन संस्कार माघ महीने से लेकर आने वाले 6 महीने तक के समय में करना शुभ माना गया है। चैत्र मास में केवल ब्राह्मण बटुकों का ही उपनयन संस्कार किया जा सकता है। इस संस्कार को शुक्ल पक्ष में 2, 3, 5, 10, 11, 12 तिथि और कृष्ण पक्ष में 2, 3, 5, तिथि में किया जा सकता है। उपनयन कर्म पूर्वाह्र और मध्याह्र में किया जाता है। रोग बाण होने पर उपनयन संस्कार नहीं किया जाना चाहिए।
उपनयन संस्कार को बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन करना शुभ माना गया है। इनके अलावा रविवार का दिन मध्यम होता है, तो वहीं सोमवार का दिन निम्न शुभ होता है। इस संस्कार को मंगलवार और शनिवार के दिन करना अशुभ माना गया है।
उपनयन संस्कार के लिए हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, धनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण एवं रेवती सबसे शुभ नक्षत्र होते हैं। वहीं भरणी, कृत्तिका, मघा, विशाखा, ज्येष्ठा, शतभिषा नक्षत्र में उपनयन संस्कार करना वर्जित है। पुनर्वसु नक्षत्र में विप्र बटुकों का उपनयन संस्कार करना वर्जित होता है।
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हिंदू धर्म में उपनयन संस्कार एक विवाह समारोह की तरह मनाते हैं। जनेऊ संस्कार की प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन करते हैं, जिसमें बच्चे के साथ-साथ पूरा परिवार हिस्सा लेता है। जनेऊ संस्कार वाले दिन सबसे पहले बच्चे का मुंडन करते हैं। मुंडन होने के बाद बच्चे को नहलाकर जिस हिस्से से बाल निकाला गया, वहां चंदन और केसर का लेप लगा दें। अब एक जनेऊ लेकर और बच्चे के बाएं कंधे से दाहिने बाजू की तरफ पहनाएं।
इस संस्कार के दौरान हवन का आयोजन भी करते हैं, जिसमें सभी देवी-देवताओं की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। यज्ञवेदी के सामने बिठाने से पहले बालक को अधोवस्त्र और माला पहनने को दें। इस बात का ध्यान रहें कि जो वस्त्र आप बालक को पहना रहें हैं वो कही से भी सिला हुआ ना हो। बच्चे के गले में पीले रंग का एक वस्त्र डालें और पैरों में खड़ाऊ पहनने को दें। अब देवताओं का आह्वान करें और बालक को शास्त्र शिक्षा व् व्रतों के पालन करने का वचन दिलाएं। संस्कार किये जाने वाले बच्चे को उसकी उम्र के हीं बच्चों के साथ बिठाकर चूरमा खिलाएं। अब बालक को स्नान कराकर वहां मौजूद गुरु, पिता या बड़ा भाई गायत्री मंत्र सुनाते हुए बालक से कहे कि “आज से तू अब ब्राह्मण हो गया ”।
इसके बाद वर्णानुसार जातक को मेखला धारण कराएं, जिसमें ब्राह्मण बालक को मुंज व् क्षत्रिय बालक को धनुष की डोर तो वहीँ वैश्य बालक को ऊन के धागे की कोंधनी धारण कराना चाहिए। मेखला के साथ एक दंड(डंडा) हाथ में दे और उस जातक संस्कार में उपस्थित लोगों से भीक्षा मांगने को कहे। बालक डंडे को कंधे पर रखकर घर से भागते हुए यह कहे कि “मैं पढ़ने के लिए काशी जा रहा हूँ”। बाद में कुछ लोग जातक को विवाह का लालच देकर पकड़कर वापस ले आते हैं। और इस क्रिया के बाद जातक को ब्राह्मण मान लिया जाता है और यह संस्कार संपन्न हो जाता है।
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उम्मीद है कि इस लेख में उपनयन मुहूर्त 2022 के बारे में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। एस्ट्रोकैंप से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद !
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